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________________ ६९८ प्रश्नध्याकरण भरं न नित्थरेज्जा, सप्पुरिसनिसेविय चमगंभीओ न समत्थो अणुचरिउं । तम्हा न भीइयव्व भयस्स वा वाहिस्स वा रोगस्स वा जराए वा मच्चुरस वा अन्नस्स वा एवमाइयस्स । एव धिज्जेण भाविओ अतरप्पा सजयकरचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसपन्नो ॥ सू० ७ ॥ ___टीका-'चउत्थ' चतुर्थी भावनामा:-'न भीडयन्य' न भेतव्य भय न कर्तव्यम् । कथ भय न तव्यम्' इत्याह-'मीय' भीत भययुक्त माणिन खलु भया' भयानि 'लहुय' लघुक-गीयम् ' अइति' आयन्ति प्राप्नुवन्ति, तथा ' भीओ ' भीतः 'मणुमो ' मनुष्यः 'अनितिज्नओ' अद्वितीय असहायो भनति, अय भारः-भीतो मनुष्यो न फम्यापि सहायको भाति, न कोऽपि तस्य सहायको या भवति । तथा-' भीओ' भीतो मनुष्यः । भूएहिं ' भूते:प्रेतैः 'विप्पइ ' गृह्यते, भूतारिष्टो भवतीत्यर्थः । तथा-भीत: 'अन्न पि' अन्यमपि ' मेसेज्जो' भीपयते । तथा-भीत' ' तवसनम पि' तपः सयममपि अब सूत्रकार चौथी भावना जो धैर्य भावना है उसे कहते हैं'चउत्थ' इत्यादि। टीकार्य-(चउत्थ) वह चौथी धैर्य भावना इस प्रकार से है (न भीइयन ) भय नही करना चाहिये । क्यो कि (भीयखु भया अइति लहुअ ) जो भययुक्त होता है उस प्राणी के पास निश्चय से भय शीघ्र आते हैं। (भीओ अवितिज्जओ मणूसो) तथा जो भय से डरता है ऐसा मनुष्य अद्वितीय होता है-वह न किसी की सहायता कर सकता है और न कोई दूसरा मनुष्य उसका ही सहायक होता है। (भाआ भुएहिं धिप्पा) भीत मनुष्य को भूत पकड लेते है। (भीओ अन्न पिहुभेसेज्जा) भय से भीत दृआ मनुष्य दूसरों को भी भययुक्त 6वे सूत्रा२ याथी धैर्यमापना नामनी लापना विष छ-" चउत्थ" त्या टार्थ-'चउत्थ" ते याथा धैय भावना या प्रमाणे छ-"न भीइयत्व ' लय पाभव। नये नही २ "भीय ख भया अइति लहअ" भी काय छते व्यक्ति पासे यास मय शा मावेछ भीओ अवितिज्जआ मणूसो" तथा यथी ७३ वो मनुष्य मद्वितीय डाय छे-ते धन મદદ કરી શકતો નથી અને કોઈ બીજે મનષ્ય તેને સહાયક થતો નથી " भीओ भूएहिं विप्पइ" मयलीत मनुष्यने भूत पीछे “भीओ अन्न पि हुभेसेज्जा" लयीत मनुष्य मी योजने ५ लयलीत ४२ थे, तभीमा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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