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________________ प्राण्याकरण अलिय १, कित्तीए लाभस्स वा कएणलडो लोलो भणेज्ज अलिय २, इड्डीए सोक्सस्त वा कएण, लुछो लोलो भणेज्ज अलियं ३, भत्तस्स पागस्स वा करण, लदो लोलो भणेज्ज अलियं ४, पीढस्स फलगस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलिय ५, सेज्जाए सथारगरस वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ६, वत्थस्स पत्तस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं ७, कवलस्स पायपुंछणस्स वा कएण, लुद्धो लोलो भणेज्ज अलिय ८, सोसस्स सोस. णीए वा कएण, लुतो लोलो भणेज्ज अलियं ९, अन्नेसु एवमाइसु वहुसु कारणसएसुलु हो लोलो भणेज्ज आलियं १० तम्हा लोहो न सेवियम्बो, एव मुत्तीए भाविओ भवइ अ. तरप्पा संजयकरचरणनयणवयणो सूरोसच्चज्जवसंपन्नो॥६॥ टाका-'तइय' तृतीया भावनामाह-'लोहोन सेवियन्यो' लोमो न सेवितव्य । लोभसेवनेन किं भवेत् ? इत्याह-'लुद्धो ' लुधो-लोभयुक्तो नरा 'लोलो' लोल'वञ्चल:=पन् 'अलिय ' अलीक कटापन भणेज्न' भणे कथयेत् । केन निमित्तेन लुब्धोऽलीक भणे ? इत्याह-'खेत्तस्स' क्षेत्रस्य ____ अब सूत्रकार तृतीय भावना जो लोभनिग्रह रूप है उसे प्रकट करते हैं—'तय लोहो' इत्यादि । टीकार्थ-(तइय ) लोभ निग्रहरूप तृतीय भावना इस प्रकार से है. (लोहो न सेवियवो) लोभ सेवन करने योग्य नहीं है। क्या कि (लद्धो लोलो अलिय भणेज्ज) लोभ के सेवन करने से प्राणी लुब्ध कहलाता है, और वह लोभ युक्त बना हुआ मनुष्य चञ्चल चित्त होकर वे सूत्रधानि नामजी बी लादनानु पर्छ । २ छे “तइय लोहो” । टी-" तइय" aei.३५ त्री भावना मा प्रभारी छ-" लोहो न सेवियव्वो" साल सेवन ४२वाने योग्य नथी १२“लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज" हालतुं सेवन २वाथी पाए हुण्य उपाय छ, म त बलयुटत भनय यय वित्तवाणी नेट क्यन मोदी , “खेत्तस्स वत्युत्त
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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