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________________ २४ प्रश्नध्याकरणसूत्रे टीका-'पाणवहो' माणवधो नाम 'सो' एपक्ष्यमाणः 'जिणे जिनैः 'भणिओ' भणितः कथितः । स चायम्-'पायो' पाप -पापपतीना बन्धकारणत्वात् । 'चडो' चण्ड:-क्रोधजनकत्वात् 'कहो' रौद्रः-रोदरसमपतितत्वात् , 'खुद्दो' क्षुद्रः-शुद्रजनाचरितत्वात् , 'साहमिओ' साहसिक:-अममीक्ष्यकारि जनप्रवर्तितत्वात् । 'अणारिओ' अनार्य -अनार्यपुस्पैराचरितत्वात् । 'णिग्धिणो' निगः-न विद्यते घृणा-पापजुगुप्सा येपा ते निघृणाः-निर्दया:, तैराचरितत्वात् । णिस्ससो' शस:-क्रूरकर्माचरितत्वात् , 'महरूमओ' महाभयः-महाभयजनकत्वात् , 'पइभओ' प्रतिभयः-सफलप्राणिनां भयहेतुत्वात् , ____ अय सूत्रकार 'जारिसओ' इस द्वार का विवरण करते हुए प्रागध के स्वरूप को कहते है-'पाणवहो नाम एसो 'इत्यादि। टीकार्य-(एसो पाणवहो नाम) यह प्रागवध (जिणेहिं) जिनेद्र देवने (पावो) पाप प्रकृतियो के वध का कारण होने से पापरूप १, (चडो) क्रोध का जनक होने से, चडरूप २, (रदो) रौद्र रल से प्रवर्तित होने के कारण रौद्ररूप ६, (खुद्दो) क्षुद्र जनों द्वारा आचरित होने के कारण क्षुद्ररूप ४, (साइसिओ) अविचार शील मनुष्यो द्वारा किया हुआ होने के कारण साहसिक रूप ५, ( अणारिओ) अनार्य जनों द्वारा विहित होने के कारण अनार्यरूप ५, (णिग्धिणो) दया विहीन हृदयवाले मनुष्यों द्वारा सेवित होने के कारण निघृणरूप ७, (णिस्ससो) कर कर्मवाले जनों द्वारा किया हुआ होने के कारण नृशसरूप८, (मभओ) महान् भयका जनक होने के कारण महा भय रूप९, (पहभओ) समस्त प्रागियोको भयका हेतु वे सूत्रा२ “जारिसओ" मा द्वारनु पणुन उरता प्रावधनु २१३५ छ-" पाणवहो नाम एसो" त्या Astथ-"एसो पाणवहो नाम" २५ प्रावध “जिणेहि" मेन्द्र हेव (१) "पावो" पा५ प्रतियाना मधनु १२ डापाथा पा५३५, (२) " चडो" जोधन पहा ४२ना२ वायी २३३५, (3) "रुद्दो" रौद्र २सथी प्रवर्तित सोपान धरणे श२३५, (४) "खुद्दो" क्षुद्रगना द्वारा मायरित डावाथी क्षुद्र३५, (५) “साहसिओ" मवियारी मनुष्य द्वारा रातो पाने ४२२ सा सि४३५, (6) "अणारिओ" અનાર્ય લેકે દ્વારા કરાતો હોવાને કારણે અનાર્યરૂપ, (૭) "णिग्विणो" या२डित या at E रातो पाथी नि३५, (८) "जिससो" दू२ मा at द्वारा ४२सता डावाने नृश स३५, (6) "महमओ" महान लयन पाथी महालय३५, (१०) "पइमओ" समस्त प्राणीमान अयने तुभूत पाने २ प्रतिमय३५, (११) "अइमओ"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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