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________________ सुदर्शिनी टीका य० २ सू०४ प्रथमभावनास्वपनिरूपणम् ६८५ समति सत्यवचनस्य पञ्च भाग्ना. प्रतिपात्यन् पूर्व समितियोगलक्षणां प्रथमा भावनामाह-' तस्म इमा' इत्यादि मृलम्-तस्स इमा पच भावणाओ चीयस्त वयस्स अलियवयण-बेरमण-परिरक्खणट्टयाए । पढम सोऊण संवर? परमट्ट सुट जाणिऊण न वैगिय, न तुरिय, न चवलं न कडुयं, न फरुस, न साहस, न य परस्ल पीलाकर सावज्ज सच्च च मिय च गाहग च सुह सगयमकाहलं च समीक्खिय सजएण कालम्मिय बत्तव्य । एव अगुवाइसमिइजोगेण भाविओ भवइ अतरप्पासजयकरचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्गो ॥ सू०४ ॥ टीका- तस्स ' तस्य प्रसिद्धस्य 'वीयस्स वपस्स ' द्वितीयस्य व्रतस्य इमाः वक्ष्यमाणाः पञ्च 'भाषणाओ ' भावनाः ‘अलियरयणवेरमणपरिरक्खणवचन कहेजाते हैं वे नामादियुक्त वचन कहलाते हैं। इस प्रकार के ये सत्यवचन सयम आदि के बावक नहीं होते है। ऐसे वचन सत्यवती योल सकता है। तथा वह प्राकृत आदि भेद से बारह प्रकार की भाषा और एकवचन आदि के भेद से सोलर प्रकार का वचन भी बोल सकता है। इस प्रकार के वचन बोलने में प्रभु की आज्ञा है। ऐसे वचन योलने में किसी भी जीव को पाधा नहीं पहुँचती है । सू०३ ।। अय सूत्रकार सत्यवचन की पाच भावनाओ को कहने के अभिप्रोय से सर्वप्रथम वे अनुविचिन्त्य समिति नाम की प्रथम भावना નામાદિયુક્ત વચન કહેવાય છે, આ પ્રકારના તે સત્યવચને સયમ આદિમા બાધક થતા નથી એવા વચન સત્યવતી બોલી શકે છે તથા તે પ્રાકૃત આદિ ભેદથી બાર પ્રકારની ભાષા અને એક વચન આદિ ભેદથી નળ પ્રકારના વચન પણ બેલી શકે છે, આ પ્રકારના વચન બોલવાની પ્રભુની આજ્ઞા છે એવા વચને બોલવાથી કેઈપણ જીવને બાધા પહોચતી નથી | સૂ ૩ li હવે સત્રકાર સત્યવચનની પાચ ભાવનાઓ દર્શાવવાને માટે સૌથી __ पसा तसा अनुविचिन्त्य समिति नामनी पक्षी भावनानु qणुन उरे छ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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