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________________ ma r - - - - - - तथा-'विमलयरं सरयनहयलागो' विमलारं शरनभस्तलात-गन्कालिक गगनतलादप्यधिक निर्मय, मालिन्परहितत्वात् , तथा-'मुरमियर गधमायणाओ' सुरभितर गन्धमादनाद-गन्धमादनपतात् र हि-नीलवन वर्षपरपर्वतम्य दक्षिणदिशि, मेरोयिन्यकोणे, गीतोदानयुत्तरकल्पर्तिनो गधिलारवीनाम्नोऽएमविजयस्य पूर्वदिशि तया-उत्तरपुरूणा सकिएभोगभूमिकक्षेत्रात् पश्चिमदिशि महानिदेशानस्यो गनदन्तमस्थानसम्यितो गन्धमादननामा वक्षस्कारपर्वतोऽस्ति । गधेन न्वय माधति मदयति मा निरासिदेवदेवीना मनामीति गन्धमादन । यथा पिग्यमाणाना सचूर्ण्यमानानाम्-उत्कोर्यमाणाना विकीर्यमादीप्त है। (विम्लयर सरयनस्यलाओ) मलिनता से विहीन रोने के कारण शरत्कालिक आकाशतल की अपेक्षा अधिक निर्मल है। तथा (सुरभियर गरमायणाओ) जनों के पदयों को आकर्षण करने वाला होने के कारण यह सत्र गधमादन नामक पर्वत की अपेक्षा अत्यन्त सुग न्धित है । यह गधमादन नाम का वक्षस्कार पर्वत नीलवर्षधर पर्वत की दक्षिणदिशा में, मेरु के पायव्यकोण मे, गीतोदानदी के उत्तर तट पर रहे हुए गन्धिलायती नामक अष्टमविजय को पूर्वदिगा में, तथा उत्तर कुरु के सर्वोत्कृष्ट भोगभूमिकक्षेत्र रो पश्चिमदिशा में महाविदेहक्षेत्र में है । उसका सस्थान आकार-गजदत जैसा है अर्थात्-गजदत के आकार में यह स्थित है। अपनी गंध से स्वय को सुगधित करता है तथा अपने ऊपर रहने वाले देवदेवियों के मन को मदोन्मत्त बना देता है उसका नाम गधमादक है ऐसा यह पर्वत है। जैसे पिसते हुए, फैले हुए, अथवा एक वर्तन से दूसरे वतेन " विमलयर सरयनह्यलाओ" मलिनताथी २हित पावी १२४ातुनी माशत ४२तपशु धारे नि " सुरभियर गवमायणाओ" भान સેના ચિત્તનું આકર્ષણ કરનાર હોવાથી આ સત્ય ગ ધમાદન નામના પત કરતા પણ અધિક સુગન્ધિત છે તે ગન્ધમાદન નામને વક્ષસ્કાર પર્વત નલિ વર્ષ ધર પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં, મેઝ, વાયવ્ય કોણમા, શીદા નદીના ઉત્તર કિનારે રહેલ ગન્ધિલાવતી નામના અષ્ટમવિયની પૂર્વ દિશામા, તથા ઉત્તર કરુના સર્વોત્કૃષ્ટ ભેગભૂમિક ક્ષેત્રની પશ્ચિમ દિશામાં મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં છે તેને આકાર ગજદત જેવો છે એટલે કે તે ગજરાતના આકારે ઉભે છે પિતાની ગ ધવડે જે પોતે વાસયુક્ત બને છે અને પોતાની ઉપર વાસ કરતા દેવદેવીઓના મનને જે મદોન્મત્ત કરી નાખે છે, તેનું નામ ગધમાદન છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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