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________________ ६६४ - प्रमध्यापरणो सपुमोहि' चतुर्दशपूर्षिभिः । पाहुडत्यविडय' मानार्थविदितम-गांभविशेपाभिधेयतया सत्यनादपूर्वनाम्ना मातम्, तथा- मारिलीण य' महगां च 'समयपण' समप्रदत्त समयेन-मिदानेन प्रदत्तमोर्ग, ममि सिद्धा न्तरूपतया गृहीतमिया, तथा 'दविंदनरिभामियत्य' देनरेन्द्रभाषिनाथम् देवा नाम्-इन्द्रादीना नरेन्द्राणा-चक्रवर्तिमभृतीना भापित: पतिभापितोऽर्थः प्रयोजन यस्य तत् , तपा-माणियसाहिए' मानिसमाधित वैमानिक मानिकट साधित मापनाविषयीहत, सेपितमिन्यर्थः, तपा-'महान्य' महार्यम्-महान् अर्थ: =प्रयोजन यस्य तत् , तपा'मतोमहिरिग्जासाटणत्य' मन्त्रीपधिनियासाधनार्थम्मन्नापधिविद्याना साधनमय प्रयोजन पन्य ता , तेन पिना तन्सियभामाद , तथा-'चारणगणसमगसिपिज' चारणगगमगसिद्वविद्यम् चारणगणानापाट टत्यचिय) स सत्य को चतुर्दश पूर्वधारियों ने प्राभृता स्प से विदित किया है अर्थात् पूर्वगत अशविशेप की अभिरेयता से सत्यवादपूर्व इस नाम से जाना है, (मररिसीण य समापदण्ण) मर्पियों ने इसे सिद्वान्तरूप से स्वीकार किया है, (देवनारंट मासियत्य) इन्द्रादिको के लिये तथा चावी आदि (राजाओं) के लिये इसका प्रयोजन उपादेयरूप से कहा गया है, (वेमाणिय मारिय) वैमानिक देवों ने इम सत्य को अपनी साधना का विषयभूत बनाना है अर्थात् इसका सेवन किया है (मरस्य) ह महान् अर्थ-प्रयोजन वाला है (मतोसहिविज्जासारणत्य) मन्त्रीपधि ऐच विद्याओं का साधन इसका प्रयोजन है क्योंकि सत्य के विनामत्रादिसिद्ध नहीं होतेहै, (चारणगणसमणसिद्धविज्ज) हमी के प्रभाव से इसी चारणगणो को आकाशगा पुव्वीहिं पाहुडत्थविइय" मा सत्यने यौह धागास प्रालताथ विहित કર્યું છે એટલે કે પૂર્વગત અ શવિશેષની અભિધેયતાથી સત્યવાદ પૂર્વ એ नामथी एयु छ " महरिसीण य ममयपदण्ण " महर्षिभोगे तेने सिद्धांत ३थे स्वीयु छ “ देवनरिंद भासियत्थ” दाहिन तथा पती मात नरेन्द्रीने भाटे तेनु प्रयासन पायउथे ४वायु छ, “ वेमाणियसाहिय । વૈમાનિક દેએ આ સત્યને પિતાની સાવનાનો વિષય બનાવ્યો છે એટલે કે तेनु सेवन यु छ, “महत्य" ते महान पथ-प्रयोगवा “मतो सहिविगासाहणत्य" ते भ-मौषधि भने विद्यासानु साधन तेनु प्रयोग छ १२५ सत्य विन भत्राहि म यता नथी, “चारणगणममणसिद्ध ન્ન છે તેના પ્રભાવથી ચારણ ગગને આકાશગામિનો વિવાની તમને
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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