SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 776
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५० प्रभध्याकरणसूत्रे देवय व जंत अच्छेरकारगं अवस्थेतरेसु बहुए माणुसाणं सच्चेणं महासमुद्दमज्झे विचिति, न निमजति मूढाणिया वि पोया सच्चेण य उद्गसंभममि वि न वुद्धंति, न य मरति याहं च ते लब्भति, सच्चेण य अगणि सभममि विन उज्यंति उज्जुगा मणुस्सा । सच्चेण य तत्ततेत उलोहसीसकाइ छिव्वति, धरैति न उज्यंति मनुस्सा | पव्वयकडगाहिं मुश्चंते न य मरति सच्चेण य परिग्गहिया असिपजरगया समराओ वि णिइति अणहाय सच्चवाई, वहवधाभिओगवेर घोरेहिं पमुच्चति य, अमित्तमञ्झाहिं निइति अणहाय सच्चवाई | सा देव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रयाणं ॥ सू० १॥ टीका - ' जनू ' इत्यादि सुधर्मा स्वामी जवू स्वामिन प्रत्याह हे जम्मू' ! ' एत्तो ' इत' - प्रथमसवरद्वारानन्तरम् ' विश्य च ' द्वितीय खलु सरद्वार " सन्चत्रयण' सत्यवचनम् = सद्द्भ्यो- मुनिभ्यो गुणेभ्य पदार्थेभ्यो वा हितम् - उपकारक सत्यम्, उक्त 6 'जबू ! एन्तो विश्य च ' इत्यादि । टीकार्थ- श्री सुधर्मा स्वामी जबरवामी से कहते हैं (जबू !) हे जवू ! (तो) इस प्रथमसवरद्वार के बाद यह (विश्य च ) दूसरा सवर द्वार सत्य नामका है सो मैं इसे कहता है, तुम सुनो - ( सच्च वयण ) " सद्द्भ्यो हित " सत्य अर्थात् सत् का मुनिजन का अथवा गुणो का या पदार्थो का जो वचन हित - उपकारक होता है वह सत्य वचन है । " कहा भी है , टीअर्थ - श्री सुधर्भास्वामी यू स्वाभीने हे छे 'जबू " हे ४५ । "एत्तो" आपला सवरद्वार पछी ' बिइय च " जीन्तु सत्य नामनु ने सवरद्वार છે તેનુ હુ વર્ષોંન કરૂ છુ તે તમે સાભળે! દ सच्चवयण "" सद्द्भ्यो हित" સત્ય એટલે કે સત્તુ મુનિજનનુ અથવા શુષ્ણેાનુ અથવા પદાર્થાન જે વચન હિત–ઉપકારક હાય છે તે સત્યવચન ગણાય છે કહ્યુ પણ છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy