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________________ सुदशिनी टीका म० १ ० ११ अध्ययनोपमहार ६४३ सम्मत सूत्रकारः प्रथमस परकारमुपसहरन्नाह-' एवं ' इत्यादि मूलम्-एवमिणं सवरदार सम्म संवरिय होइ, सुप्पणिहियं, इमेहि पचहि वि कारणेहि मणवयणकायपरिरक्खिएहि, णिच्चं आमरणत च एस जोगो णेयम्बो धिइमया मइमया अणासवो अकल्लसो अच्छिद्दो अपरिसाइ असकिलिहो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णाओ । एव पढम सव्वरदार फासिय पालिय सोहियं तीरिय किट्टिय आराहिय आणाए अणुपालियं भवड। एव णायमुणिणा भगवया पण्जवियं परूवियं पसिद्ध सिद्ध सिद्धवरसासणमिण आघवियं सुदेसिय पसत्थ पढम सवरदारं समत्तं त्ति वेमि॥ सू-११ ॥ ___टीका-' एवमिण' इत्यादि-- 'एमिण ' एवम्---उक्त कमेण इदम्-अहिंसालक्षण 'सबरदार' सनरद्वारम्= सवररय-अनाश्रवस्य द्वारम् उपायः ' सम्म' सम्यक् ' सबरिय' सहतम्-संसे(भाविओ भवड) यावित बना हुआ वह जीव हेतुभून अशवल, असक्लिट, निव्रण (निरतिचार)चारीत्र की भावना से अहिंसक सयत बन जाता है। और सच्चेरूप में अपने सावुपद को सार्थक कर लेता है। निर्जन्तु भूमि पर उपकरणो का धरना और उठाना इसका नाम आदानभाण्डनिक्षेपणा समिति है। इस समिति के योग से आत्मा-मुनि अपने अहिंसा महारत की रक्षा और स्थिरता करता रहता है ॥ ॥ सू० १०॥ अय सूत्रकार प्रथम सवर द्वार का उपसहार करते हुए कहते हैंतरप्पा" 4 “भाविओ भाइ" सावित मनी लय लावित मने ते જીવ હિતભૂત અગબેલ, અસ વિલણ, નિર્વાણુ ચારિત્રની ભાવનાથી અહિંસક સયત બની જાય છે અને સાચા અર્થમાં પિતાના સાધુ પદને સાર્થક કરે છે ભૂમિ પર ઉપકરણને મૂકવા તથા ઉપાડવા તેનુ નામ આદાન ભાડ નિક્ષેપણ સમિતિ છે આ સમિતિના ચેગથી આત્મા મુનિ–પિતાના અહિંસા મહાવ્રતની રક્ષા તથા સ્થિરતા કરતા રહે છે કે સુ-૧૦ | वे सूत्रा२ प्रथम स १२वारा G५२ ३२॥ छ-"एवमिण त्या
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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