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________________ - सुदाशना टाका अ० १ सू०७ भावनास्वरूपानरूपणम् पाप-पापेन मनसा भाति, अतएव-तत् ' कयापि' कदापिकस्मिन्नपि काले 'किंचि वि' किंचिदपि-स्वल्पमपि 'पारग' पापम् अशुभ न ' झायव्वं ' ध्यातव्यम्न चितनीयमित्यर्थः । एवम् अमुना प्रकारेण 'अवरप्पा' अन्तरात्मा जीवः ‘मणसमिडजोगेण' मनः समितियोगेन भारितो भवति । भावितात्मा कीदृशो भपति ? इत्याह --- अगालसक्लिष्टनित्रणचारित्रभावनया हेतुभूतया अहिंसकासयत' सुसाधुर्भवति । एपामर्थो द्वितीयभावना व्याख्याया द्रष्टव्यः ॥७॥ पाप नरक निगोद आदि दुर्गतियों के अनत दुखों का जनक होने से उनसे मदा भरा रहता है ऐसा कहा गया है । इस प्रकार के विशेषणों से विशिष्ट पाप यह जीव पापयुक्त मन से करता है। ऐसा समझ कर (कयावि किंचि वि) किमी भी काल में कुछ भी थोड़ा सा भी (पावण्ण मणेण ) पापकारी मन से (पावग ) पाप-अशुभ (न झायव्व) नहीं विचरना गहिये। (एव मणसमिटजोगेण अतरप्पा भाविओ भवह ) इस प्रकार से अतरात्मा-जीव मन समिति के योग से भावित होता है । ( असरलमसकिलिनिव्वणचरित्तभावणाए अहिंमए सजएसुसाह) यह भावित आत्मा मलिनता से रहित तथा विशुद्धयमान मन परिणाम से युक्त ऐसी हेतुभून चारित्र भावना के प्रभाव से अहिंसक होता है। और मयत होता है । और ऐसा होने के कारण ही वह सच्चा साधु-मोक्ष साधक मुनि-कहलाता है। भावार्थ-मन को अशुभ ध्यान से बचाकर शुभ भ्यान मे लगाना કારણે તે પાપ નર નિગદ આદિ દુર્ગતિના અનત દુબેન જનક હોવાથી તેનાથી સદા ભરેલ રહે છે એમ કહેવામા આવ્યુ છેઆ પ્રકારના વિશેષ– शोथी युत ५.५ मा ७१ पापयुक्त भनथी उरे छे से सभने “ कयावि कि चि वि" 35 पy आणे भाडा पशु “पावएण मणेण" पापा भनथी " पावग" पा५-५शुम “न झायव्य " पियार मे नही " एव मण समिइजोगेण अतरप्पा भाविओ भवइ" ॥ ४॥२ सतरात्मा-छप भन समि तिना योगथी सावित थाय छ “ अमबलमसरिलिटुनिव्वणचरितभावणाए अहि सए सजए सुसाहू " ते लावित मात्मा मलिनताथी २डित तथा विशुद्ध મન પરિણામથી યુક્ત એવી હેતુભૂત ચારિત્ર ભાવનાના પ્રભાવથી અહિંસક થાય છે અને સયત બને છે અને એવુ થવાથી જ તે સાચો સાધુ–મક્ષ સાધક મુનિ કહેવાય છે * ભાવાર્થ-મનને અશુભ ધ્યાનથી બચાવીને શુભ ધ્યાનમા લગાડવુ તેને -- प्र ७९
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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