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________________ ६०६ प्रेमव्याकरण पृथिवी कायिकादयः 'चइय' त्यानिता दातव्यपदार्थान दायकेन भृत्यादि द्वारा पृथयारिता , अथवा 'चत्ता' सयमेर दायकेन त्यक्ता पृथमृता देवा जीवशरीराणि यस्मादाहारातत् तथोक्तम् , अतण्य 'फागुप च' प्रामुक च% व्यपगतनीव च, एतादृशम्-माहा मानादिक गपेपितव्यम् । तथा कीटम भरे न गपितव्यम् ? इत्याह-न निसिनाहापयोयगाखामु ओषणीय' न निपद्य कथाप्रयोजनार याश्रुतोपनीत, वत्र-निपय आसने उपविश्य यत् स्याप्रयोजन-धर्म कयानिमित्तम् आग्या युगा-भाग्यान प्रतिदिशात्र, तेन तथाविधयाकरणेन, यत् उपनीतम् धर्मकयाः दारफेन दातुमानीतमगनाटिक, वन गवेपितव्यमित्यग्रेण सम्पन्धः । तथा-नविगिछामनमूलभेमज्जकन्नड' न चिकित्सामन्त्रमूलभपज्य कार्य हेतु = चिकित्मा-रोगनिवारणलपणा, मन्त्रा आहार से पिपीलिकादिक जीव स्य अलग हो गए हों तथा (चुय) जीव स्वय चव गये हों अथवा अग्न्यादि के सयोग से चवगये हों, (चइय) दाता ने भृत्यादि द्वारा पृथक् करा दिये हों, (चत्त) स्वय दाता ने पृथक् करदिये हो, (फासुय च) मासुकोसा अशन आदि मुनिजनों को कल्प्य है और ऐसे ही आहार की उन्हें गवेपणा करनी चाहिये। तथा जो ऐसा न हो उसकी उन्हें गवेपणा नहीं करनी चाहिये, इसी विषयको अब सूत्रकार "न निसिज" इत्यादि पदो द्वारा प्रकट करते हैं, वे करते हैं कि (न निसिज्जक कहापभोयणक्खामु ओवणीय) आसन पर बैठ कर धर्म कथा सुनाते समय यदि कोई दाता उन मुनिजन के पास देने के लिये अशनादि देय द्रव्य लाया हो तो वह उन मुनिजनों को कल्पता नही लेना है । तथा-(न तिगिच्छामतमूलभेसजकजउ ) जिस भक्ष्य की प्राप्ति में मुनि को चिकित्सा-रोगनिवारण के निमित्त डाय मया भनि महिना सयोगथी नाश पाम्या डाय, (चय) होता ना । २० २०या जाय, (चत्त) हातात भने म यो डाय, (फासुयच ) प्रामुक सेवा माडार माहि भुनियान उधे छ भने यस જ આહારની તેમણે ગષણું કરવી જોઈએ, તથા જે આહાર એ ન હોય તેની ગષણા તેમણે કરવી જોઈએ નહીં એ જ વિષયને હવે સૂત્રકાર “ન निसिज" त्यादि हो । प्रगट उरे छ तेसा मयावे छ (न निसिज कहायओयणकखासुओरणीय ) भासने मेसीन मया सात मत કેઈ દાતા તે મુનિને આપવા માટે અશનાદિ દેયદ્રવ્ય લાવ્યું હોય તે તે निनाने नथी, तथा (नतिगिच्छामत भूल भेसज्जकजहेउ) २ આહારની પ્રાપ્તિ માટે મુનિને ચિકિત્સા–રેગ નિવારણ માટે ઈલાજ, મત્ર
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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