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________________ ५७४ এখালেহ चरएहि अण्णगिलाइएहि माणचरएहि संमट्टकप्पिाहि तज्जायसंसहकप्पिएहि उवनिहिएहि सुद्धेसणिएहिं ससादत्तिएहिं दिलाभिएहि अदिहलाभिएहिं आयविलिएहि पुटलाभिएहि आयविलिए हिं पुरिमडिएहि एकासणिएहिं निविइएहि भिन्नपिडवाइहिं परिमियपिडवाइएहि अंतहारेहि पताहारेहि अरसाहारेहि विरसाहारेहि लूहाहारेहि तुच्छाहारेहि अतजीविहि पतजीविएहि लूहजीविहि उनसतजीविएहि पसतजीविहि विवित्तजीविहिं अस्वीरमहसप्पिएहि अमज्जमसासिएहि पडिमट्टाइएहिं ठाणुकडिएहिं वीरामणिएहि सजिएहि डडायइएहि लगडसाईहि एगपसिएहिं आयावएहि अवाउडएहि अणिट्टयएहि अकडुयएहि धुयकेसमसुलोमनहेहि सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहि समणु. चिन्ना, सुयधरविदियत्थकायवुद्धिणो धीरमइवुद्धिणो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा निच्छयववसाय पज्जत्तकयमइया णिच्च सज्झायज्झाणा अणुवद्धधम्मज्झाणपचमहव्वयच. रित्तजुत्ता, समिया समिईसु, समियपावा,छविह जगवच्छला, निच्चमप्पमत्ता, एएहि अन्नेहि य जा सा अणुपालिया भगवई ॥ सू० ४ ॥ टीका-'एसा भगाई ' इत्यादि-- • 'एसा भयवई अहिंसा' एपा भगवती अहिंसाएपा पूर्वोक्ता भगवती पूजनीया सज्ञप्ररूपिताऽहिंसैप सम्यगहिसाऽस्ति, न तु सर्वज्ञेतरकल्पिता । 'जा की है, तथा सेवा की है उन महापुरुषों को प्रकट करते है-'एसा भग वई' इत्यादि। टीकार्य-(एसा भगवई अहिंसा) यह वेक्ति भगवति अहिंसा सर्वज्ञ द्वारा प्ररूपित अहिंसा ही सच्ची अहिंमाहै, सर्वज्ञ से भिन्न इतर शछ ते महापुरुषाना नाम प्राट ७२ छ-" एसा भगवई " त्या Astथ-सा भगवई अहिंसा" मा पूर्व गवती मसि-सज्ञ द्वारा પ્રરૂપિત અહિસા જ સાચી અહિ સા છે, સર્વજ્ઞ સિવાયના બીજા છદ્મસ્થ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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