SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७० प्रभव्याकरणसूत्रे - - - समति अहिंसामाहात्म्यमाद मूलम्-एसा भगवई अहिसा, जा सा भीयाण पिव सरणं पक्खीण पिव गयणं, तिसियाण पित्र सलिलं, खुहियाणं पिव असणं, समुद्दमझेव पोपवहण, चउप्पयाण च आसमपय, दुहटियाणं च ओसहिवल, अडवीमज्झे च सस्थगमण, एत्तो विसिट्टतरिया अहिसा जा सा पुढवीजल अगणि मारुयवणस्सइ - वीय - हरिय -- जलचर--- थलचर-खहयर तस-थावर-सव्वभूयखेमकरी ॥ सू० ३॥ टीका-'एसा भगवई ' इत्यादिएपा-जिनशासनप्रसिद्धा-अहिंसा भगाती या सा 'भीयाण पिन सरण' भीतानामिव शरणम्=भय भीताना माणिना नाणाथ गृहमिवास्ति, 'पक्खीणपिच गयण' पक्षिणामित्र गगनम्=पक्षिणा गगनमित्र, यथा पक्षिणा गमने गगनमाधारो भवति, तथैव सर्वधर्माणामियमहिंसाऽऽधार । 'तिसियाण पिव सलिलम्___ अब सत्रकार इस अहिंसा के माहात्म्य को प्रदर्शित करते है'एसा भगवई ' इत्यादि। टीकार्य-( एसा) जिनशासन मे प्रसिद्ध यह ( अहिंसा भगवई) अहिंसा भगवती (जा सा) जो वह अहिमा ( भीयाण पिव सरण) भयभीत हुए प्राणियों की रक्षा करने के लिये घर जैसी है। ( पक्खीण पिव गगण ) तथा जिस प्रकार पक्षियो को गमन करने में आधारभूत आकाश होता है उसी तरह समस्त धमों की आधारभूत यह अहिंसा ही है। (तिसियाण पिव सलिल ) जिस प्रकार तृषित व्यक्तियों की व सूत्रा२ मा मडिंसानु महात्म्य शकिछे-“ एसा भगवई" त्या ___“ पसा" ordसनमा प्रसिद्ध ते" अहिंसा भगवई " अहिंसा भगवती, "जा सा" २ “भियाण पिन सम्ण" लयीत गनेस प्राणीमानी २क्षा ४२ वान भाट ३२ समान छ, “पक्खीण पिर गगण " तथा म पक्षागाने ગમન કરવામા આકાશ આધારભૂત થાય છે, એ જ પ્રમાણે સમસ્ત ધર્મોને भाटे आधारभूत 21 मङिमा ४ छ, “ तिमियाण पिव सलिल " भ त२
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy