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________________ सुशिनी टीका अ० १ सू० २ प्रथमसंवरतारनिरूपणम् वन्धनेभ्यो यया सा तथोक्ता, सफलपधबन्धनविमोचकत्यात् १२, ‘खत्ती' क्षान्तिा क्रोधादिनिग्रहकारकत्नात् १३, 'सम्मत्ताराहणा' सम्यक्त्वारापना सम्मस्व-सभ्यमोधरूपमारा यते यया सा तथोक्ता, जिनशासनाराधनकारणत्वाद १४, 'महई ' महती सर्वधर्मानुष्ठानश्रेष्ठत्वात् १५, 'मोही' बोधिः-सर्वशीक्तधर्ममाप्तिरूपत्वात् १६, 'बुद्धी' बुद्धिः, परदुःखारपोषकत्वात् १७, 'घिई' धृतिः, म्रियमाणजीवस्याभयप्रदायकत्वात् , यद्वा-धृतिश्चित्तदाढर्यम् , असिया चित्ते दाढयस्य समुत्पयमानत्वात् १८, 'समिद्धी' समृद्धि, आनन्दजनकत्वात् इसलिये प्राणीयो की सकल वध बन्धनों से विमोच का होने के कारण इसका नाम (विमुत्ती) विमुक्ती है १२ । यह समस्त क्रोधादि कपायों की निग्रह कारिफा है इसलिये इसका नाम ( खती) क्षान्ति है १३ । सम्यक् बोधरूप मम्यक्त्व इसके होने पर ही आराधित होता है, अर्थात् यह जिनशासन की कारण होती है इसलिये इसका नाम (सम्मत्ताराहणा) सम्यक्त्वाराधना है १४ । धर्मके समस्त अनुष्ठानों में यह श्रेष्ठ है इसलिये इसका नाम (महती ) महती है १५ । सर्वजप्रतिरादित धर्मकी प्राप्तिरूप होने से इसका नाम (योही) बोधि है १३ । परदु.खो की अयोधिका होने से, अर्थात् परकीय दुःखो को पतलाने वाली होने से इसका नाम (वुद्धी) बुद्धि है १७ । मरते हुए जीवों को इसके प्रभाव से अभय की प्राप्ति होती है इसलिये इसका नाम (विई) धृति है। अथवा-धृति शब्द का अर्थ चित्त की दृढता है, सो अहिंसा से चित्त मे दृढ़ता उत्पन्न होती है यह बात निविवाद है १८ । आनन्द तेनु नाम "विमुत्ती" विभुति छ, (१२) ते समस्त अपाहि पायोना निय नारी छ, तथा तेनु नाम 'सती" क्षन्ति छ (13) सभ्यनाथ રૂપ સમ્યકત્વ તે વિદ્યમાન હોય તે જ આરાધાય છે, એટલે કે તે જિનશા सननी माराधनाना १२४३५ सय छ नयी तेनु नाम “सम्मत्ताराहणा" સમ્યકત્વારાધના છે (૧૪) ધર્મના સમસ્ત અનુષ્ઠાનેમા તે શ્રેષ્ઠ છે તેથી તેનું नाम “ महती " महती छ (१५) सर्व प्रतिपाति भनी प्रासि३५ पाथी तनु नाम “बोही" माधि (१६) ५२९ जानी अपमाधि पाथी मेरो है पानाम पतावनारी पाथी तेनु न म “बुद्धी" मुद्धि छ (१७) भरता लवाने तेना प्रमाथा मजयनी प्राप्ति थाय छ, तथा तेनु नाम"धिई" પતિ છે અથવા ધતિ શબ્દનો અર્થ ચિત્તની દઢતા છે તે અહિંસાથી ચિત્તમાં દઢતા ઉત્પન્ન થાય છે તે વાત નિર્વિવાદ છે (૧૮) આનદની જનક હેવાથી
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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