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________________ ५५६ प्रश्नध्याकरणले प्रतानि तानि तथोक्तानि, तया- ' सीलगुणवरब्बयाई' शीलगुणवरब्रतानिन शील-चित्तसमाधिः गुणा. विनयादयः तैराणि-श्रेष्ठानि यानि ब्रतानि तानि तथोक्तानि- ' सचज्जवन्धयइ ' सत्यापनतानि, तर-सत्यम् भूपावादवर्जनम् , आर्जवम् मायाननम् , तद्वाणि यानि नतानि तानि तयोक्तानि, तथा'नरगतिरियमणुयदेवगविविधज्जगाइ' नरकतिर्यदमनुज देवगतिश्विर्जकानिनरकतिर्यमनुनदेवाभिशाश्वतम्रोगतीविनर्जयन्ति मोक्षगतिमापकत्वेन यानि तानि तथोक्तानि, तथा- 'सबनिगलासगगाड' सर्वजिनशासनरानि सर्वजिने शिष्यन्ते =उपदिश्यन्ते यागि तानि तथोक्तानि, तथा-'कम्मरयवियारगाइ' कर्मरजोविनाम सयम है, इसमें प्रवृत्त साधु के नवीन कर्मों का आगमन रूक जाता है अर्थात् नबीन कर्मों के आस्रव का निरोध होना यहि इस सयम ना फल है । इसलिये ये सवरद्वार तपसयम रूप महावत हैं । तथा ये सवरद्वार-(सीलगुणवरव्ययाइ ) शील' गुगवर व्रतरूपह-चित्त की समाधि का नाम शोल है, विनय आदि का नामगुण है । इनसे भेष्ठ जोबत हैतदुपये सवर द्वार है। (सच्चजवन्वायाइ) सत्य-मृपावादका परित्याग, आर्जव-माया का त्याग, इन रूप जो व्रत है तदपये सवरद्वार हैं । (नरगतिरियमणुयदेवाइविवजगाइ ) इनकी आराधना से आराधक जीव को मोक्षगति कीप्राप्ति होती है इसलिये ये सवर द्वार नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव, इन चारो गतियों से अपने आराधक जीव को दूर कर देते है इसलिये ये नरक तिर्यक मनुज देवगति विवर्जक हैं । (सव्वजि णसासणग्गइ) इन सबरद्वारों का उपदेश अभीतक जितने भी जिन हो પ્રવૃત્ત થયેલ સાધુને નવા કર્મોનું આગમન અટકી જાય છે એટલે કે નવા કર્મોના અસવને નિરોધ થવો એ જ આ સયમનું ફળ છે, તેથી તે સવર द्वार त५ सयभ३५ महानत छ तथा ते सवा२-" सीलगुणवरव्वयाइ" શીલગુણવરવ્રત રૂપ છે-શીલ એટલે ચિત્તની સમાધિ, વિનય આદિ ગુણે કહે पाय छ, तमना १3 २ व्रत छ ते २॥ २ सव२२ छे “सच जवनयाइ " सत्य-भूषापानी परित्याग, मा-भायाना त्यान, मे मारना २ प्रत ते ते प्रधान ते स१२६२ छ “ नरगतिरियमणुयदेवाइविवन्नगाइ" तेमनी माराधनाथी माराथ वन भोक्षगति प्राप्त थाय छ તેથી તે તે સ વાર પિતાની આરાધના કરનાર જીવોને નરક, તિર્યંચ, મનુષ્ય અને દેવ એ ચાર ગતિમાં જતા રોકે છે, તેથી તેઓ નરક, તિર્યં ચ મનું ધ્ય અને દેવગતિના વિવક
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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