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सुदर्शिनी टीका अ०५ ० ४ मनुव्यपरिग्रहनिरूपणम्
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हुति, नियमा सल्ला दडा य गारवा य कमाया य सन्नाय - कामगुणअहगा य इदियलेसाओ, सयणमुपओगा सचिताचित्तमी सगाई दवाइ अनंतगाड इच्छति परिघेत्तु । सदेवमणुयासुरम्म लोए । लोभपरिग्गहो जिणवरे हि भणिओ, नत्थि एरिसो पासो पडिवधो अत्थि सव्वे जीवाण सव्वलोए ॥ सू० ४ ॥
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टीका- 'खार अम्मभूमी' वक्षस्काराकर्मभूमिनु वक्षस्कारा = चित्रकृविजयविभाग गरिणथ, कर्मभूमय = हैमतिका भोगभ्रमयश्च तासु तथो कामु ये वर्तन्ते तथा 'सुविभत्तभागदेसामु ' सुविभक्तभागदेशा सुविभक्ता भांगदेशा पाया ताम्तयोक्तामु 'कम्मभूमिसु ' कर्मभूमीसु -- कृप्यादिं स्थानभूतेषु भारतादिषु ' जे विय' येऽपि च नराः 'चाउरतचव वट्टी ' चा तुरन्वचक्रर्तिनो सुदेवा, वल्देन 'मडलिया ' माण्डलिका 'इस्सरा' ईश्वराः 'तारा' ' तवराः, 'सेणावई' सेनापतय, 'इन्भा' इभ्या: ' सेट्ठी 'श्रेष्ठिनः
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अब सूत्रकार मनुष्य के परिग्रह का वर्णन करते हैं - ' वखार इत्यादि ( वखार अम्मभूमीसु ) विजय विभागकारी चित्रकूट आदि. वक्षस्कारों में, अकर्मभृमियो मे हैमवतिक आदि युगलिक धर्मवाले क्षेत्रों में, तथा (सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमील) सुविभक्त भाग देशवाली कर्म भूमियों में कृप्यादि कर्म के स्थानभृत भरत आदि क्षेत्रों' में (जेविय नरा चा उरत चावट्टी वासुदेवायलदेचा मंडलिया इस्रा तलवरा सेणानईइन्भा सेट्ठिया रहिया पुरोहियाकुमारा दडणायगा गायगा माविया सत्यवाहा कोडबिगा अमच्चा एए अण्णे य एवमादी परिग्ग सचिणति ) जो भी मनुष्य हैं, चातुरन्तचक्रवती हैं,
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हवे सूत्रजर मनुष्योना पग्नुि वर्शन उरे छे" वक्सार " त्याहि वक्सार - अकम्म भूमोसु" वित्र्य विभागअरी चित्रट आहि वक्षस् રામા, અકમ ભૂમિયામા-હુમતિ- આદિ યુગલિક ધર્મવાળા ક્ષેત્રમા, તથા सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमीसु' सुविलन्त लाग देशवाणी उभं लूमियोमाखेती स्याहि उर्मना स्थान३५ लत साहित्रमा " जेविय नरा चाउरतचकवट्टी वासुदेवा देवा मडलिया इस्सरा तलवरा सेणावई इच्भा से ट्टिया रट्रिया पुरोहिया कुमारा पडणायगा गणणायगा माडत्रिया सत्थवाहा कोडुनिया अमच्ची ए ए अणे य एवमादी परिग्गह सचिणति " 7 मनुष्यो छे, यातुरन्त यवर्ति छे
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