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________________ - - - सुनी -सीका 7०५ १०३ यथा ये परिप्रद पुर्वन्ति तन्निरूपणम् । पनीयतकापर्णः-तप्तं यसपनीयकमान्तपनीयमु वर्ण तस्य वर्षासमोधस्य माग तयोता भानी परितापने सुवर्णस्त्र यादो पो भवमि, तादृश-वर्ण-पुता ब्यक आईसात्स्वे रद्दषचनम् । नया गप उतरे जे गह' ये पां. सम्पतिकाल मसिद्धानेपामुलालान्याजोइसम्मि'ध्यातिषि-ज्योनिश्रा चारारतिक -परिभाम्पत्ति, ते ग्रहाः, नधा फेस य तपन-ज्योतिष्प विशेपा हे जगह शुभाशमनिमितमवलम्ब्योदय, प्रागुनति- पुलडियातास चोटीवाला तास इत्यादिनाम्ना भाषामसिद्धा, कोदशाएने इत्याद'गडदया जानिरतिका'-। गमनशीएफराशितोऽन्यरागा, प्रगमनस्वभावा।। एते चन्द्रमर्यग्रहात्रिविधाजसोनम विष्कदेवा उक्ताः । तथा 'अहानीमापिटा य' अष्टानिशतिरिधाश्च नरखत्तदेव:गणा नक्षदरगामीशी उत्याह-तया नावामठाणमंठियाओमी और अगरिक भगल ये भेद हा यलगारक तत्ततरणिजकणगर्वणी तसतपनीय-तपाये हुगे सुवर्ण के वर्ण के जैसा धेर्ण वाली है। अर्थात् अग्नि में पाने से सुवर्ण का जैसा रंग होता है वैसी ही इसको रंग हैतिया (जेय गह। जोइसिम्मि चार चरति इनसे अंतिरिक्त जी इस समय में प्रसिई नेपच्युले हपैल आदि ग्रेह है कि जी ज्योतिश्चक में। परिभ्रमण करते हैं वह तथा-(1ऊ य) केतु ग्रह जो जगत के शुभ अशुभै निमित्त को लेकर उदित होता है और जिसे पूछडियोग तारा चोटीवाला तारा" इत्यादि नाम से लोग कहा करते हैं ये सब ही (गइरहया) गमनशील है-एक राशि से अन्यराशि पर गमन, करने के स्वभायवाले है। ये उक्त ( सिविहा) तीन प्रकार को चद्र,सूर्य ग्रहस्प ज्योतिपी देवे तथा (अट्ठावीमह विरी) अट्ठाईसे' प्रकार के (नक्खत्तदेवगणा) नक्षत्र (णाणासठाणसठियाओ) नाना रगाय " , धूमकेतु, भु५-२मने अा छ, त - २४- " तत्ततवणिज्जकणागवण्णा " त सुप ना २२ । पायो तथा “जे अ, गहा जोइसिम्मि चार चरति" ते सिवायत-staina સમયમાં પ્રસિદ્ધ નેપન, હર્ષલ આદું રહે છે જે તિક્ષકમાં ફરિભ્રમૂર્ણ डा तथा केऊय अंडीगतना शुभ अशुभ मानिमित्त દયંવર્ન ઉગે છે અને જેને પૂછડિયા તારીને મનને આપે છે એ બધ" "महरइयो " भनी छे शशिमाथी भन्न शरिभाभ' श्वामावापामा छ त Seri"तिविहां " ांशु प्रानन्द्र, सूय अन 8 यातिषी देवा तथा अदाधीसइविहा 18वीन नखक्षी देवगणा" नक्षत्र, # णाणासठाणसठियाओ" विविध प्रशासन से स्थानामा पोprmanand
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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