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सुशिनी टीका म० ४ ० ४ १४ चतुर्थमन्तरिनिरूपणम् साहारणसरीरपत्तेयमरीरेस' पर्याप्ताऽपर्याप्तफसाधारणशरीरमत्येकशरीरेषु च जन्ममरण कुर्वन्ति । ततोऽपि नि.मृत्य · अड य पोयय जराउय रस यस सेइम समुन्छिम उभिज्ज उपराइएमु य ' तत्र अण्डजा-पक्षि मत्स्यादयः 'पोयन' पोतना इस्त्यादय 'जराउय ' जरायुजाः मनुष्यादयः, 'रस य' रमजा निकृतरसेपु समुत्पन्नाः 'ससेइम' सम्वेदिमा' सस्वेदात् जाता यूका मत्कुणादयः 'समुच्छिम' समूच्छिमा:समूनि जाताः दर्दुरादयः 'उभिज्ज' उद्भिज्जाः पृथियो मुद्भिध जाता: शलभादयः 'उपवाइय' औपपातिमादेव नारकादयश्च, इत्येतेषु च नरगतिरियदेवमाणुसेग्म' नरकतिर्यग्देनमानुशेषु कीदृशेषु ? इत्याइ-' जरामरणरोगसोगपहलेस' जरामरणरोगशोकमहुलेपु(तसवायरमुहमाघायरेसु )वस, स्यावर, सूक्ष्म, चादर इन कायों में, तथा (पजत्तगपनत्तसाहारणपत्ते य मरीरेसु य) पर्यातक अपर्याप्तक, माधारणशरीर, प्रत्येक शरीर इन पर्यायों में जन्म मरण करते है । वहा से भी निकल कर वे ( अड य पोयय जरास्य रस य ससेहम समुच्छियाभिज्जउवयाइएसु य) अडज जीवों में-पक्षी मत्स्य आदिकों मे, पोतजजीयो में एस्ती आदिकों में, जरायुज में-जरा से पैदा होने वाले मनुष्य आदिकों में, रसज जीनों में-विकृत रसोंमे उत्पन्न होने वाले कृमि आदि जीवोंमें, सस्वेदिमोमे पमीनेसे रोनेवाले युका, मत्कुण आदि जीवोंमें, सम्रमि जन्मपाले दर्दुर ( मेढक ) आदि जीवो में, उद्भिज्ज जोचो मे-पृथिवि को भेद्का उत्पन्न होने वाले शलभ आदि जीवो मे औपपातिक जन्म धारी देव और नारकियो मे उत्पन्न होते है । तथाचे (जरामरणरोगसोग पहले नु नरगतिरियदेवमाणु मेसु ) जरा, मरण, रोग, शोक वहुल, नरक, " तसथावरमुदुमवायरेसु" साय, स्था१२७।य, सूक्ष्माय भने १२॥यामा तया " पजत्तमपज्जत्तसाहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु य ” पर्यात, मर्या४४, સાધારણ શરીર, પ્રત્યેક શરીર આદિ પર્યામાં જન્મ મરણ અનુભવે છે स्याथा पर नीजान तेगा " अडय-पोयय-जराउय-रसय ससे इम-समुच्छिय उभिनउवाइण्सु य” २५१ यामा-पक्षी मत्स्य हिमा, पोतर
મા હાથી આદિમાં જરાયુજમાં મનુષ્ય આદિ મા રસ જ છવામાં वित २सभा Gपन्न यना२ मि मा वामा, सस्वेदिमा मा ५२सेवायी ઉત્પન્ન થનાર જ, માકડ આદિ જવોમા, સ મૂછિમ જન્મવાળા દેડકા આદિ
મા, ઉદ્ધિજજીવોમા-પૃથ્વીને ભેદીને ઉત્પન્ન થનાર તીડ આદિ જીરામા, भी५पातिक व भने नासामा सत्पन्न याय छे तया तो “जरामरणरोगसोगबहुलेसु नरगतिरियदेवमाणुसेसु" २१, भ२९, २॥ मने विve