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________________ सुशिनी टीका १०४ सू० १३ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम् ४८३ वगदुरगवाहिदोभग्गमोयनुकाओ' व्यपगतवलीपलित व्यगदुर्वर्णव्याधिदोर्भाग्यशोयुक्ताः व्यागा-नष्टा वली = चर्मशिथिलता तथा पलित-केशशुक्लत्व व्यग-अहस्लिता दुर्वर्ण:-रूप्य व्याधिः शरीरव्यथा, दोर्भाग्य धन्य शोक 3 खेदव एनर्मुक्ताः = रतिदा यास्तास्तथा 'उच्चत्तण य नरथोवृणमूमियाओ' उच्चत्वेन च नरस्तोफेनोन्जिता उच्चत्वेन शरीरोच्चत्वेन च नरेभ्यः पुरुपेभ्यो स्तोफोन किञ्चिन्यून यथास्यात्तथा उचिताः उन्चायास्ताः तथा-पुरुपप्रमाणात् किञ्चिदल्पप्रमाणोन्नता', 'सिंगाराऽऽगारचारुवेसा' शृङ्गाराऽऽगारचारवेपा , शृङ्गारस्य-शृङ्गाररसस्य आगारमिव गृहमिव चारु -सुन्दरः वेपः वस्त्रादिविभूपा यासा तास्तथा 'मुदर थणजहणायणफरचलणणयणा ' सुन्दरस्तनजधनवदनकरचरणनयनाः = मुन्दराणि स्तन-जयन-बदन-कर-चरण - नयना नियामां वास्तया 'लावण्णरूपजोगगगुगोश्वेया' लापण्यरूपयौवनगुणोपेता:लागण्य = शरीरमौन्दर्यरैशिष्टर निखिलानयवाविरेकिस्वरूपशोभाविशेपः रूप (ववगययलीरलियबगदुषणवारिदोभग सोयमुकाओ) इनकी चमडीमें शिथिलता कहीं नहींआती है । वालों में सफेदी नहीं आती है। इनका कोई भी अग विकल नहीं होता है। विरूपता इनमें बिलकुल नहीं होती है। व्याधि का इनमें अभाव होता है । वैधव्य रूप दौर्भाग्य से ररित होती हैं । शोक और खेद से वर्जित होती हैं । (उच्चत्तेण य नर मोवूणमूसियाओ ) ऊंचाई में ये मनुष्यों से कुछ ही कम होती हैं । (सिंगारा गारचारूसा ) शृगाररस के घर जैसा इनका सुन्दर वेष-वस्त्रादि वेषभूपा होता है। (सुन्दर थगजहण पथणकरचलणणयणा) इनके स्तन, जघन, वदन, कर, चरण, और नयन मुन्दर होते हैं । ( लावण्णरूवजोव्वणगुणोववेया) इनमें लावण्य, रूप, यौवन एव गुण असारण होते हैं। दुन्त्रणवाहिदोभगसोयमुक्काओ " तमनी यामीमा शिथिलता भारती નથી, વાળ સફેદ થતા નથી, તેમને કોઈ પણ અગે બેડ હોતી નથી, તેમનામાં વિરૂપતા બિલકુલ હોતી નથી, વ્યાધિ તેમને પડતી નથી કારણ કે તેઓ નીગી હોય છે, તેઓ વૈધવ્ય રૂપ દુર્ભાગ્યથી રહિત હોય છે અને ४ सने मेथी २डित डाय छ । उच्चत्तण य नरयोवृण मूसियाओ" भनुष्यो ४२ तमनी या याही डाय छे “सिंगारागारचारुवेसा" तभनी वेषभूषा श्रृगार २सन २२२वी डाय छ " सुदरथणजहणायणकरचलणणयणा" तेमना स्तन, धा, पहन, ४२, २२६, भने नयन मुहर राय छे. "लावण्णरूनजोमणगुणोपवेया" तेमनामा दा१९य, ३५, यौवन भने राष्ट्र
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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