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________________ - ४५८ प्रमण्याकरणमा फमलनालतन्तु तद्वद्धपग टन्नश्रेणी दगदतियेगां ने तथा अग्बडद्वन्तार परिपूर्णदन्ता ' अफुडियदता' आफुटितदन्तापातदन्ताः अपिरलदन्ताःअच्छिद्रदन्ताः मुधनदन्ता इत्यर्थः 'मुगिदता' गुम्निम्यन्ता 'अरु तदन्तवन्तः सुनायदन्ता' मुजातदन्ताः = मुसस्थितदाना' 'गतमेदिकारणेगदता' एकदन्तश्रेणिरित अनेना येषा हागिरम्न अपि मुशियादेकदन्तवद् दृश्यन्ते प्रत्यर्थः । यानि धोयतततरणिज्जरगतलतालुनीहा ' हुनबह निर्मातधाततप्ततपनीयरक्ततगालजिहा = तपन = पसिना नि ति : तापित धौत-पिशोपित तान यापनीय गुवर्ण नेन तुत्य रक्तनल-रक्तरण तालुनदी जल आदि के फेन जैमी, नपुपरिशेप जानी, जल की बिन्दु जैती, तथा मृणालिका-कमल नाल के तन्तु जैसी धवल रोती है (असदता) तथा उनके दात परिपूर्ण रोते है-(अडियदना) तथा ये _ अस्फुटित दातोपाले होते है-उपड़ पारड इनके दांत नहीं होते है। और न टूटे फटे ही रोते है (अविरलदता) तथा इनके दान अच्छिा होते है -दूर २ नहीं होते है । अर्थात्-परस्पर में एक दूसरे दांत के साथ मिले नए रहते है । तया ( मुणिद्वदना ) ये दात इनके रक्षा से विहीन होते है अर्थात् चिकने होते है (सुजाय दता) शुत अच्छी तरहस ये सस्थित-ममूडों में गढे हए रहते हैं (एगदतसेदिव्यअणेगदता) याप ये दांत इनके बत्तीस ही होते है फिर मी परस्पर में सुश्लिष्ट होने के कारण एक दात की तरह ही दिग्वते है तपा- (इयवहनिद्धतधोयतत्ततवणिज रत्तनलनाजीहा) जिनको तालु एव जिहा रहि से तपाये गये मिन्दु २वी, तथा भजनासना ततूवी, सहाय छ " असदता " तमना हात परिपू डाय छे माछा पधारे हात नथी 'अफुडियद ता" તેમના દાત અસ્ફટિત હોય છે–પિલાણ વાળા હોતા નથી અને તૂટેલા પણ डाता नथी "अविरलद ता" तथा तहात पासे पासे डाय छ २ ६२ जाता નથી એટલે કે પરસ્પર એક બીજા સાથે અડકીને રહેવા દેય છે, તથા "सुणिद्धद तो " तभना मे हात ३सताथी २डित म सुवास डाय छ "सुजायदता" ते धी सारी शत पेढामा २डेसा डाय छ “ एगदतसेढिव्व अणेगदता " ने भने मत्रीस होत अय, छत ५५ ५२२५२ मेवाशत અડોઅડ આવેલા હોય છે કે તે એક દાત હોય તેવા દેખાય છે તથા " हयवहनिद्धत पोयतत्ततपणिजरत्ततलतालुजोहा" भनु त भने से આગમાં તપાવેલ શુદ્ધ સુવર્ણના જેવા લાલ સપાટી વાળા હે છે તથા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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