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________________ ४४४ प्रमभ्याकरण सान्तः पुरा =सस्त्रीका ' सपरिसा' सपरिपदापरिसाराः 'सपुरोहिया मच्च उडणायगसेगावइमतिणीमला ' सपुरोहितामात्य-टण्डनायसेनापति मन्त्रिनीतिफुशलाः = तन पुरोहिताः = शान्तिकारिणः अमात्या-मन्त्रिणः दण नायका कोटपालादयः सेनापतयः मन्त्रिणश्र कीशास्ते १ इत्याह-नीतिकमला: नीती-सामदामादि रूपापा कुमला निपुणा, तेः सहिताः 'णाणामणिरयण विउलघणघण्गसचयनिहिसगिद्धकोमा' नानामणिरत्लरिपुलपनपा यसमय-निषि समृद्धकोशाः = चक्रवतिने व्याख्यानमिदम् । विउल ' विपुला - महती 'रज्जसिरि 'रायश्रिय-राज्यलक्ष्मीम् ' अणुमरिता ' अनुभूप-उपन्य 'वियोसता' विक्रोशन्ता अन्यान् पीडयन्त 'चलेग मत्ता' मलेन मता:-बलग विवाः, 'ते वि' तेऽपि-माडलिकादयः, 'अस्तित्ता कामाण' कामानामविता कामोपभोगेषु वप्तिरहिता एप, 'उवणमति मरणधम्म'मरणधर्ममुपनमन्ति।०९॥ होते हैं, वे कैसे होते हैं ? सो करते है- (सयला ) सेना सहित होते हैं, (सअतेउरा) अतःपुरसे जो युक्त होते हैं, (सपरिसा) परिवार सहित होते है, (सपुरोरियामच्चडडणायगसेणावहमतिणीइकुसला) जिनके शातिकर्म कराने वाले पुरोहित अमात्य, दडनायक और सेनापति साम दान आदि रूप राजनीति में कुशल हुआ करते हैं। तथा( णाणामणिरयणपिउलधणधण्णसचयनिहिसमिद्धकोसा ) नानामणि यों से, रत्नों से, विपुल धन धान्य के सचय से और निधियों से जिन का कोश समृद्ध रहता है, तथा जो (विउल) विपुल ( रज्जसिरि) राज्यश्री को (अणुभचित्ता) भोग करके (विकोसता) दूसरे व्यक्तियों को रातदिन पीडित किया करनेवाले तथा (वलेण मत्ता) अपने बल से गर्वित बने हुए (ते वि ) इस प्रकार के वे भी मांडलिक आदि राजा डाय छ, ते ७ छ-" सवला " तेमा सनायुत राय छ, “स अतेउरा" सात पुरथी युत सय छ, “सपरिवारा" परिवार युक्त डाय छ, "सपुरोहिया मच्चडणागसेणावहमतिणीइकुसला"भना ति ४ ४शना२पुराडित અમાત્ય ઇડનાયક અને સેનાપતિ સામ, દામ, આદિ રૂપ રાજનીતિ જાણકાર हाय छे तथा " णाणामणिरयणविउलवणधण्णसचयनिहिमिद्धकोसा " alay મણિ, રત્ન, વિપુલ ધન-ધાન્ય આદિના સચયથી તથા નિધિથી भनी Hona सहा समृद्ध २ छ तथा विउल विधुर " रज्जसिरिं" सय सभाना “ अणुभवित्ता " Guो छ, “विकोसत्ता" भीan RAहिस पाउनास तथा “चलेण मता" पाताना मी विट मनसा !
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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