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________________ ४४० प्रश्नण्याकरणस्ने अतिभास्वरःगुरुतः गुष्ठ रचितो पिमलापलो याकौस्तुमा मणिविशेषस्त तथा किरीट-मुकुट च धारयन्ति ये ते तथा इदमपि गमुदेव विशेषगम् । 'उडर उज्जो वियाणणा' कुण्डठोयोतितानना =Tण्डलार्णभूषणे -उद्योतित माश्रित मानन-मुख येपा ते तथा, 'पुढरीयणयणा' पुण्डरीरनयना' = मिठाया 'एगा चलिकठरहयय छा' एकापलीकण्ठरचितास एकापलीमण्टे रचितारण्ठावलम्पिनी सतीकता समिक्ष स्थळे येपा ते तया सिरिस हालत्रणा ' श्रीवत्ससुलान्छनाः श्रीवत्म श्रीवत्सास्वस्तिकरिशेपः स एर गोभन लाग्न येषा ते तया 'घरजसा' परयशस रिश्रुतीर्तय. 'सयोउयमुरभिमुमरइय-पलब सोहत-रियसत-विचित्तरणमा रहय-पन्ग' सर्तकमुरभिकम्मरचित-मलम्ब शोभमानविकसदानचित्रवनमाला रचित यसम' स मतुम मुरभिमुमेमुगन्धिपुप्पैः रचिताः निर्मिता प्रारम्भशोभमाना-परम्पमानत्वेन मुशोभना धुभकिरिडधारी ) अत्यन्त भास्कर अच्छी तरह से रचित, तथा स्वच् ऐसा कौस्तुभ रत्न तथा किरीट-मुकुट इन्हें कृष्ण वासुदेव धारण करते थे। नधा ( कुडल उज्जोयाणणा) इन दोनों भाईयों का मुग्व कोभूपणों से सदा प्रकाशित रहता था। (पुटरीयणयणा) इनके नयन पुडरिक- (श्वेतरुमल ) जैसे शोभायमान थे। (एगावलिकठरइयवच्छा) फठ में जो ये एमावली हार पहिने हुए ये वह छाती तक लटकता था। (सिरियच्छ सुलछणा ) श्रीवत्स नामक स्वस्तिक विशेष चिह्न इनके वक्षस्थल में या (वरजसा) चारों तरफ इनकी कीर्ति फैली हुई थी, (सव्वोउयसुरभिकुसुमरदयपलयसोहतवियसतविचित्तवणमालरइयवच्छा) इनके वक्षस्थल पर जो वनमाला लटक रही थी वह समस्त ऋतु सबधा सुरभितपुष्पों से गुथी हुई थी, एव बहुत लयी थी, इसलीये बड़ी અત્યત ભાસ્વર-સુદર રીતે તૈયાર કરેલ, સ્વચ્છ સ્તુભ રન તથા કિરીટમુ गट वासुदेव पाए उता ता तथा “कुडलउज्जोइयाणणा" ते मन्न सामाना भुम भूषणेथी सहा प्रशित २ता उता, "पुडरीयणयणा" तमना नयन पुरी (म३६ ४५) २१ सुह२ ता 'एगावलीकठरइयवव ” કમા જે એક સરવાળે હાર પહેર્યો હતો તે છાતી સુધી લટકતા હતા " सिरिवच्छसुल्छणा" तमना पक्षस्थ ५२ श्री .स नामनु स्वस्ति विशेष यिह तु, “ वरजसा " तेभनी ति याभ२ व्यापी ती, “ सव्योउय-सुर भिकुसमरइय-पल न-सोहत-वियसत विचित्तवणमाल-रइयवच्छा" तभना पक्ष न्य પર જે પુપમાળા લટકતી હતી તે બધી ઋતુઓના સુગધિદાર ફૂલે વર્ડ ગુયેલી હતી, અને બહુ લાબી હતી, તેથી તે ઘણી સુંદર લાગતી હતી, તથા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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