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________________ - - मुशिंनी टीका अ ४ सू०८ बलदेवनासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४३५ विहरण चमर्याख्यगवीना विचरण तस्मिन् काले समुद्धृताः कण्टकक्ष सलग्नभयाइ जीकृता यास्तास्तथा, ताभिः, 'निरुवयचमरिपच्छिमसरीरसजायाहिं 'निरुपहतचमरीपश्चिमशरीरसजाताभिः = निरुपहताना = नीरोगाणा चमरीणांगो विशेषाणा पश्चिमशरीरे-पुच्छपदेशे साताभिः = समुत्पन्नाभिः 'अमइलसियफमळविमुकुलुज्जलियरययगिरिसिहरविमलसमिकिरणसरिस कलधो यनिम्मलाहिं । अमलिनसितकमलविमुकुलोज्ज्वलितरजतगिरिशिखर-विमल शशिकिरणसदृशकलपोतनिर्मलाभिः तत्र ' अमइलसियकमल ' अमलिनसित. कमलम् अमलिन अम्बान शीतातपादिमिः यत् सितकमल-श्वेतकमल मुण्डरीक तच विमुकुल विकसित तथा 'उज्जलियरययगिरिसिहर' उज्ज्वलितरजतगिरि शिखरम्-उज्ज्वलित भास्वर यद् रजतगिरिशिग्मर तथा पिमलशशिकिरणाः = विमला:-निर्मला ये शशिन चन्द्रस्य फिरणाश्च तत्सदृशाः कलपीतवत्-शुद्धरजतरनिर्मला:-धनलायास्तास्तथा ताभि-अम्लानविकसितश्चेतकमलोज्ज्वलरजतपर्वतशिखरविमलचन्द्रकिरणशुदरजतपदुज्ज्वलाभिरित्यर्थः । तथा 'पवणाहयचत्र उस समय कण्टकमय वृक्षो मे लग जाने के भय से अपनी पूछ को ऊँचा उठा लेती है इसलिये यहा प्रकट किया रहा है कि जो चामर चमरी गायकी पूछ में उत्पन्न होने के कारण प्रवरगिरि के कुहरों में भ्रमण काल के समय में ऊचे उठाये गये थे तथा (निरुवयवमरीपच्छिमसरीरसजायाहिं ) जो निरुपहत-निरोग अवस्थावाली चमरी गायों की पूछ मै उत्पन्न हुए हैं, तथा (अमइलसियकमलविमुकुलुज्जलिय रययगिरि सिहरविमलससिकिरणसरिसकलधोयनिम्मलाहिं ) जो शीत आतप आदिसे म्लान नहीं हुए विकसित श्वेत कमल के समान, भास्वर, रजत गिरि के शिखर के समान, निर्मलचद्र की किरणों के समान, एव शुद्ध चादी के समान निर्मल होते हैं।तथा (पवणा हयचवल चलियसललिગુફાઓમાં ફરતી હોય છે ત્યારે વાટાળા વૃક્ષમા ભરાઈ જવાની બીકે તે પિતાની પૂછડીને ઊચી રાખે છે તે કારણે અહી એમ બતાવવામાં આવ્યુ છે કે જે ચામર ચમરી ગાયની પૂછડીમાં ઉત્પન્ન થવાને કારણે ઉત્તમ પર્વતની ગુફાमामा भ्रम ४२ती मते या side ता, तथा " निस्वयचमरीपच्छिमसरीरसजायाहि " ? नी। शरी२ पाणी यमरी गायनी पूछडीमा उत्पन्न येस छ, तथा “ अमइल-सियकमल-विमुकुलुज्जालिय-रययगिरिसिहरविमलससि-किरणसरिसफलधोयनिम्मलाहि" २ शीत, त५ महिना आमा न પડેલ વિકસિત વેત કમળ સમાન, ભાસ્વર, રજતગિરિના શિખર સમાન, નિર્મળ ચન્દ્રના કિરણે સમાન, અને શુદ્ધ ચાદીના જેવા નિર્મળ હોય છે,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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