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________________ सुदर्शिनी टीका १०४ सू०७ बलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ४३१ कृष्णस्ते इतवानित्यर्थः 'कममउउमोडगा' कममुकुटमोटकाः कसमुकुटसञ्चूरकाः, कृष्णो हि चाणसवानन्तर कुपित कम युयुत्स मुकुटदेश गृहीत्वा सिंहासनादाकृष्य भुविनिपात्य जगान । तथा 'जरासधमाणमहणा' जरासन्धमानगथनाः जरासन्यग रिनाशका , जरासन्धानका इत्यर्थः, कसबकुपित रानगृहनगरपति जरासन्याभिमान युद्धायोद्यत हतवान् । पुनः कीदृशाः' इत्याह-'तेहि य अनिरलसमसदिय चामडलममप्पभेहि मुरमरीइ काय विगिम्मुयतेहि सप्पडि दडेहि आयात्तेहिं धरिज्जतेहि गियंता ' तर 'तेहिं ' तैश्वातिशयपदिश्छविराजमानाः, इति सम्पन्धः कीदृशैछौ ? इत्याह -अविरलमममहितचन्द्रमण्डलसमप्रभः अपिरलानि धनानि-घनशनकासात् , समानि = तुल्यानि स्थूलत्वेन दीर्यत्वेन च शलाकास्त्रियों के रिपु धे-क्यो कि बाल्यावस्था में कृष्ण ने इन दोनो को मारा था, तथा (कसमउडमोडगा ) कृष्ण ने कस के मुकुट को चूर २ कर दिया या अर्थात्-चाणूर मल्ल के वध करने के अनन्तर जर कस युद्ध करने की इच्छावाला हो गया तो उसे मुकुट को पकड़ कर कृष्णने सिंहासन से नीचे खेच लिया और जमीन पर पटक कर मार डाला, इसी तरह (जरासघमाणमणा) कृष्णने-राजगृह नगर के अधिपति जरासध नाम के राजाओं को मारा हैं, कस के वध हो जाने के बाद जय जरासध कुपित होकर युद्ध करने के लिये उद्यत हो गया या तो कृष्ण ने उसे बात की बात में सग्राम भूमि मे नष्ट कर दिया था, तथा (तेहिय अविरल समसहियचद मडलसमप्पभेहिं सरमरीइकवय विणिमुयतेहिं सप्पडिडेहिं आयवत्तहि धरिज्जतेहिं विरायता)जो अतिशय शाली छत्रों से विराजमान होते हैं अर्थात्-जिन छत्रों से वलदेव और वासुदेव सुशोभित होते हैं उन छात्रों की शलाईयां बहुत अधिक घनीभूत होती પૂતના નામની બે સ્ત્રીઓના દુશમન હતા અને તે કારણે બાળપણમાં તેમણે थे भन्ने भारी ती, तथा “फसमउडमोडगा" रे मना भुपटना यूरे ચૂરા કરી નાખ્યા હતા ચાણુર મલને કૃષ્ણ વધ કર્યો પછી જ્યારે એ કૃષ્ણ સાથે લડવાની ઈચ્છા બતાવી ત્યારે કૃષ્ણ તેને મુગટ પકડીને તેને સિહા સન ઉપરથી નીચે ખેચીને જમીન ઉપર પછાડીને મારી નાખે, આ રીતે " जरासघमा महणा" ] स नगरना in IPLधने १५ उये હત કસને વય થયા પછી જ્યારે જરાસ ધ ક્રોધે ભરાઈને લડવાને તૈયાર थयो त्यारे ४ो मे घीमा तनी २शुभहानमा १५ श्यों डतेतथा “ तेहि य अचिरसमसदियच दमडलसमपभेहिं सूरमरीइ काय विणिमुयतेहिं द डेहिं आयवत्तहिं धरिज्जतेहिं चिरायता" मा घl सजिया पा॥ छत्राथी शमिता
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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