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________________ २८ प्रश्नप्याकरणको हस्तरेखादीनि सामुद्रिकशागोक्तानि, तथा व्यसनातिन-मपनिलादीनि गुणाः= शौर्यादयस्तैरुपेताः युक्ताः, 'माणुम्माणपमाणपडिपृष्णा गुनायगांगमुदरगा' मानोन्मानप्रमाणमतिपूर्णमुनातम गमुन्दराहाः = मागोमानः प्रमाणः = तत्र मान-शरीरभार, उन्मानारोगेन्छप , प्रमाण-समुचितागययात्त्व, तः प्रतिपूर्णानि-मुजातानि-मुटाया रामुत्पन्नानि साण्याानि मधमा सम्मिन् तदव विध मुन्दरमा-शरीर पाते तया सकलगुलक्षणरक्षितपुरमपमाणदरशरीरा इत्यर्थः 'ससिमोमागारा' शशिसोम्याकारा-गन्द्र-पत्नीम्याकृतिसम्पन्नाः, 'कता' 'कान्ता कमनीयाः 'पियदमणा' प्रियदर्शना मानोजस्पा 'जमरिसणा' अमर्पण = अत्याचाराऽसहिष्णवः । पयड उपयारगमीरदरिसणिज्जा' स्नेहशील होते हैं (सरण्णा) शरणागतकी रक्षा करते है (लरखणवजग गुणोववेया) जो सामुद्रिक शास्त्रोक्त रेसा आदि शुभचिन्नोसे, तथा मपा तिलक आदिशुभ व्यजनोसे व शौर्यादिक सद्गुणासे युक्त होते है माणुम्माणपमाणपडिपुण्णा सुजायमन्चगमुदरगा) शरीर भाररूप मानसे, शरीरकी ऊंचाई रूप उन्मानसे तथा समुचित शरीरावयवरुप प्रमाणसे प्रतिपूर्ण, एव सुन्दर रूपवाले समस्त अवयव जिसमे है ऐसे सुहावन शरीर से जो युक्त रोते हैं अर्थात् उनका शरीर समस्त सुलक्षणों से युक्त, सुपुष्ट और प्रमाणोपेत होने से पूर्ण सुन्दर होता है, (ससिः सोमागारा) जिनकी आकृती चद्रमा के जैसी सौम्य होती है, (कना) जो सबके लिये घडे प्रिय लगते हैं (पियदसणा) उनका दर्शन मन का बहुत अधिक आहाद जनक होता है (अमरिसणा) जो अत्याचार को सहना बहुत ही बुरा मानते है-अर्थात्-जो अत्याचार को सहन नहीं २ २क्षा ४२ना२ डाय छ, “ लम्सण जणगुणोववेया " वो सामुद्रि शास्त्रोत રેખા આદિ શુભ ચિન્હોથો તથા મષા તિલક આદિ શુભ વ્ય જનોથી અને शीर्याटि साथी युत खाय छ, “ माणुम्माणपमाण पडिपुन्नासुजायसव्व गसुदर गा" शरीरा२ ३५ भानथी, शरीरनी Gया ३५ भानथी, तथा सभाष्य શરીરવયવરૂપ પ્રમાણથી, પ્રતિપૂર્ણ અને સુદર શરીરથી જે યુક્ત છે, એટલે કે તેમનું શરીર સમસ્ત સુલક્ષણે વાળું, સુસ્પષ્ટ અને સપ્રમાણ હોવાથી સંપૂર્ણ शत सु४२ डोय छ, “ससिसोमागारा" भनी माइति यन्द्रमान वा सोभ्य डोय छ, “कता" २ सौने घर! ४ प्रिय लागे छ “पियदसणा"मना शन भनन मयत मानहाय डोय छे “ अमरिसणा" २ अत्याचाराने સહન કરે તે બહુજ ખરાબ ગણે છે એટલે કે અત્યાચારને સહન ની રસ્તા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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