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________________ सुदर्शिनी टीका अ0 ४ सू०६ घलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् वालधणधण्गसचया ' नानामणिकनारत्नमाक्तिकप्रपालपनधान्यसञ्चयाः, तत्र नानाविधा मणया चन्द्रकान्तादय कनकानि-मुवर्णानि रत्नानिकतनादीनि मौक्तिकानि-मुक्ताफलानि प्रमालानि- ' मृगा' इति प्रसिद्धानि धनानि-गणिमादीनि, तर गणिम-गणयित्वा यदीयते तद्वस्तु गणिममित्युन्यते नालिकेरपूगीफलादिकम् , एप धरिम-यत्तुलाया धृत्वा दीयते तत्, सुवर्णरजतादिकम्, मेयंकुंड वेन-माननिशेपेण 'पायली' इति प्रसिद्धेन परिमीय यदीयते तत्, शालीगोधूमादिकम् , परिन्छेच परीक्ष्य यदीयते तत् , रत्नवस्त्रादिकम् , धान्यानि शालियवादीनि तेपा सञ्चया =राशयो येपा ते तथा 'रिद्धसमिद्धकोमा' ऋद्धि समृद्धकोशा = विविधसम्पत्तिपूर्णभाण्डागारा 'हयगयरहसहस्ससामी' हयगजरयसहस्रना. मिन. स्पप्टम् । 'गामागरणगरखेड कन्वडमडवदोणमुहपट्टणाऽऽसमसवाह सहस्स थिमियनिन्यप्पमुइयजणविविह-सम्सनिष्फज्जमाणमेइणि सरसरियतलाणिकणग-रयण-मोत्तिय पवालधणधण्णसचया) चन्द्रकान्त आदि नाना प्रकारके मणियों की,सुवर्णकी, फर्केतनादि रत्नोकी, मुक्ताफलों की, मुगाओं की, तथा धन-गणिमादि, तथा गणिम-गिनकर दी जानेवाली नालिकेर पूगीफल आदि वस्तुओंफी, तथा धरिम-तुला से तौल कर दी जानेयोग्य सुवर्ण रजत आदि द्रव्योंकी, तथा मेय-कुडव 'पायली नापके नामविशेष से नापकर दिये जानेयोग्य शालि गोधूम आदि अनाजोंकी, तथापरिच्छेद्यपरीक्षा करके दी जानेयोग्य रत्न वस्त्र आदि चीजो की नथा धान्य गालि यय आदि वान्यों की इनके यहां राशि रहा करती है । तथा-(रिद्धसमिद्ध कोसा) विविध सपत्तिसे इनका भाण्डागार ( भडार ) पूर्ण भरा रहता है । तथा ( हयगयरहसहस्ससामी ) यो के घोडो के, हाथियोके एव रथों के ये स्वामी होते हैं। (गामागरणगरखेडकबडमडचदोणमुहपट्टणासम कणगरयणमोत्तिय पवालधणवण्णसचया " यन्द्रान्त मा विविध भएlभाना, भुवना, ना नानी, साया मातीना, भुजामाना, तथा, ધન-ગણિમાદિને, (ગણિમ-ગણીને અપાતી નાળિયેર પૂગીફળ આદિ વસ્તુઓનો धरिमना (“ धरिम-त्रावाथी नपान माया योग्य सुवर्ण याही माlt द्रव्य) भेय-उपना (“ पाया " (भा) माहिथी मीने मा५ योग्य ખા, ઘઉં આદિ અનાજ) પરિઠેર–પરીક્ષા કરીને આપવા યોગ્ય રત્નવસ્ત્ર આદિ ચીજોને, તથા ધાન્યને (ચોખા જવ આદિ અનાજને) તેમને २१२ लरेस डाय छ तथा “रिद्धिसमिद्धकोसा " विविध सपत्तिथी तेभने। म स२ मा लपूर २७ छ तथा " हयगयरहसहस्ससामी " घा, साथी मन रथाना तेमा मधिपति डाय छे “गामागरणगरखेडकपडमडव
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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