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________________ - - - - - प्रशन्याकरण त्रिजगत्मसिद्धाः, ' ममत्तमराहिया' समम्तगरताधिपादशिगोत्तरभरताधिपतय नाग्दा ' नरेन्द्रा, धीरासनामादियानिहतगत्तिसम्पन्ना समेलवणफाणण' सशैलानकानन गेले' पर्वत पन नगरदरम्य , मानना नगरसमीपस्थः सह-सहित यत्तत्तथाविध 'हिमतमागरत' हिमवत्मागरान्त-हिमानन्मुष्टहिमवत्पर्पत सागर समुद्र तदन्त तापपर्यन्त 'भगवास' भाग्नपं 'मातूण' भुक्त्या-उपशुज्य 'नियम' जितशत्रय -परामितसमम्तशा, 'पाररायसीहा' मवरराजसिंहा पररेपु-महापराक्रमे पपि राजमु म ये सिंहाः सिंहसदृशाः, प्रत्र रायते राजसिंहा इति वा पिना = 'पुपडत गप्पभाना' ततप प्रभावापूर्वजन्मकृततपो माहात्म्यात् 'निधिहमचियमुहा ' निर्षिप्ट सभितसुग्वाः उपभुक्तमश्चितमुग्पराशयः · अणेगाससयमाउचतो' अनेकार्पशतायुप्मन्तः, में हो जाती है, और वे (समत्तभरहाहि या ) समस्त भरतखंड के अधिपति होते है, अर्थात्-५ म्लेच्य ड और १ आर्यखड इस मकार सपूर्णभरतक्षेत्र के स्वामी होते है, (नरिंदा) तथा वे मनुष्यों के इन्द्र माने जाते है (धीरा) तथा वे सग्राम आदि में अप्रतिहत शक्ति से सपन्न होते हैं (ससेलवणकाप्पण च हिमतसागरत भोत्तूण भरहवास जियसत्तू पवररायसीहा) तया वे पर्वतों, वनों-नगर से दूर रहे हुए जगलो, एव काननों-नगर समीपस्थ जगलों से युक्त तथा क्षुल्लकहिमवान् पर्वत और समुद्रपयेत प्रसृत ऐसे भारतवर्ष का उपभोग करके समस्त शत्रुओ को पराजित करने के कारण महापराक्रम शाली राजाओ के बीच में केशरी के समान चमकते हैं, और ( पुवकडतवप्प भावा निविट सचियसुहा) पूर्वजन्म में आचरित तप के प्रभाव से वे सभा प्रसिद्ध साय छ, म तसा " समत्तभरहा हिवा" समस्त सरतम ना અધિપતિ હોય છે, એટલે કે પાચ પ્લેચ્છ ખડ અને એક આર્યખડ, એ રીતે संपूर्ण मरतक्षेत्रन। मधिपति डाय छ “ नरिदा " तथा तभन मनुष्याना छन्द्र सापामा आवे छ, “धीरा " ती सश्राम माहिमा मत शस्त धवनार डाय छे, “ससेलवणकाणण च हिमवतसागर त भोत्तुणभरहवास जियसत्तू पवररायसीहा" तथा तेसो पता, वनी-नगाथा १२ भावना al, કાનન–નગરની પાસેના જ ગલોથી યુક્ત તથા હિમાલય પર્વતથી સમુદ્ર સુધી વિસ્તત એવા ભારત વર્ષને ઉપભોગ કરીને સઘળા શત્રુઓને મહિન કરવાને १२को भडापराभी सलमानी १२ये गरी "सिंह" समान यम छ, भने "पुब्बकडतवप्पभागा निविट्ट सचियसुहा' पूर्व-भमा रेसा तपना - AL
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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