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________________ प्रश्नध्याकण शरीरममा येपा ते तथा शिशिष्टतापण्यमपना इत्यर्थः, 'पउमपम्ह कोरंटगदाम चपगमतवियपरकणगनिधसण्णा ' पद्मपल्मकोरण्टादामचम्पर मुनप्त-वरानक निकपवर्णा , तर पद्मपदम = कमलकेसर. फोरण्टक्दाम-मारण्टाघुप्पमाला चम्पकः = पुष्पविशेषः तया सुतसपरकनकस्प-पुताय पर्णस्य यो निकपा रेखा चेत्येतेपा वर्ण इस वर्णी येपा ते तया पभकमरमुनर्णादिनद् भास्वरका न्तय इत्यर्थ , ' मुजायसन्चगमुदरगा' मुजातमनिमुन्दरागा-मुजातानि= शोभन पुष्टानि सर्माणसप्रकारेण मुन्दराण्यङ्गानि अपयवा येपा ते तथा सुपुष्टशोभनागोपागसम्पन्नाः तथा ' महरयारपणुग्गरिचित्तरागएणीपण्णीनिम्मिय दुगुल्लवरचीणपट्टकोसेज्जसोणीमुत्तकविभूसियगा' महानगरपत्तनोद्गतविचित्ररागणीमैणीनिर्मितदुकल परचीनपहशीशेयश्रोणीसूतकनिभूपितागाः = तत्र महार्याणि = बहुमूल्यानि वरपत्तनोद्गानि प्रधाननगरसमुत्पन्नानि तथा विचित्ररागाणि अनेकविविधरहरञ्जितानि एणी भैणी निर्मितानिएपणी = मृगी प्रेणी शरीर की आभा विमल शोणित की घलता से रक्तवर्ण की सी होती हैं, अर्थात् जो विशिष्ट लावण्य से युक्त होता है । तथा (पउमपम्हकोरट गदामचपगसुतवियवरकणकनिघसवण्णा) पद्मपत्म-कमलकेशर, कोरपटकदाम-कोरटपुष्पों की माला, चम्पक-पुप्पविशेप, एव तापे हुए सुवर्ण की रेखा इनके वर्ण के समान जिनका वर्ण होता है, अर्थात्पद्मकेशर तप्तसुवर्ण आदि के समान भास्वर कान्ति से जो युक्त होते है, तथा (मुजायसव्वग सुदरगा) जिनके शारीरिक अवयव अच्छीतरह से पुष्ट एव सब प्रकार से सुन्दर होते हैं (मग्घघरपदृग्गयविचित्तराग एणी पएणी निम्मियदुगुल्ल वरचीणपट्टकोसेज्ज सोणीसुत्तगविभूसियगा) तथा जिनका शरीर बहुमूल्य वस्त्रों से कि जो वस्त्र प्रधान नगरों के जो बने हुए होते हैं, विविध र गो से रगे रहते है, एणी प्रेणी-मृगी और અધિકતાને લીધે રતાશ પડતી હોય છે, તથા જે વિાિણ લાવણ્યથી યુક્ત डाय छ, तथा " पउम-पम्हकोरट-गदाम-चपग-सुतवियवर-कणक-निघसवण्णा" પદ્મપક્ષમ-કમળ કેશર, કેરટદામ–કેરટ પુપની માલા, ચપાના ફૂલ, અને તપાવેલ સુવર્ણની રેખા જે જેમને વર્ણ હોય છે એટલે કે જે પદ્યુકેશર तत सुपर्ण माहिना २वी सुह२ अतिवाणा डाय , तथा सुजायसव्वगसुद रगा" मना शरी२॥ २५॥ सारी शत पुष्ट मन ४२४ ते ४२ डाय छ, “महग्यवर-पट्टणुगय-विचित्तराग-एणी-पएणी दुग्गुल्लवरचीण-पट्टकोसेज सोणीसुसाविभसियगा" तथा मा शरी२ मई सीमति सोयी सुशामित २ छ જે મુખ્ય શહેરેમા બનેલા હોય છે, વિવિધ રંગથી રંગેલા હોય છે,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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