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________________ - सुदशिनी टीका अ ३ सू० १९ ससारसागरस्वरूपनिरूपणम् ३६९ कुलित-विक्षोभित तथा भझै =तरझैः सह सहनेन ‘फुट्टत' स्फुटन्त पृथग भवन्तो ये 'निट्ठकलोल ' अनिष्टकल्लोलाः - दारुण दुःखमहातरशास्तैः सकुल =व्याप्त जल = जन्मजरामरणरूप यत्र स तथा तम् । मोहमहापर्तनिपतितनिषयोपभोगभ्रमणनिमग्नमाणियुक्त पशुपक्षिनरकनराऽमरादिविपमोनतावनतयोनि विभ्रमणतरगभगयुक्त विविधदारुणदुखदुःखित प्राणिरोदनाऽऽक्रन्दनरूपवायु समाघातपद्धदुःग्यतरङ्गयुक्त पुन पुनर्जन्ममरणरूपजल यत्र ससारसागर वसन्तीति सम्पन्यः पुन मीटश' मित्याह -- 'पमादपहचडट्ठमारयसमाहयउद्धायमाजगपूरसोरसिद्धसणत्याहुल ' प्रमादरचण्डदुष्टयापसमाहतोद्धानपूरपोरविव सानबहुल' तर-प्रमादपहुचण्डदुप्टश्वापदाममदाः = मद्यविषयकपायनिद्रा विकथारूपास्ते एव बहुचण्डा=अतिशयरोदा 'दुट्टयावय' दुःश्वापदा-हिंसक क्षुभित हो रहा है । ण्व (भगफुटन ) तरङ्गों के साथ सबहन से पृथक हुई ऐसी (निकल्लोल ) अनिष्ट फल्लोलों-दारुण दुःखरूप महातर गों से ( संकुल) सकुल बना हुआ ऐसा (जल) जन्म, जरा, मरणरूप जल इसमें भरा हुआ है । अर्थात् मोहरूप महा आवर्त में जहां विपयोपभोग की वान्छा से इतस्ततः भ्रमण करते हुए जीव निमग्न हो रहे हैं । तथा पशु, पक्षी, नरक, नर, अमर, आदि ऊँची नीची योनियों में परिभ्ररण रूप तर गे इम में उठ रही हैं, और विविध दारुण आदि दुःखों से दुःखित हुए प्राणियो के रोदन-आमदन रूप वायु के आघातों से जहा दुसरूप महा तरंगें जन्म जरा मरण रूप जल को आलोडित कर रही हैं । (पमादबहुचडदुट्ट सावध समायउद्वायमाणगपूरघोरविडसणथवहुल) तथा इस ससाररूप समुद्र मे (पमाद ) मद्य, विषय, कपाय, निद्रा, विकया, इन पाच प्रमादरूप (चड) भयकर (दुसावय) रौद्र "वाकुलिय" जी यो मन “भगफुट्टत" तरगानी साथे 24231 पाथी ! ५सी “निद्रकल्लोल" अनिष्ट उदाहरण प३५ भडातरगाथी "सकुल " व्याप्त अवु "जल -भ, १२, भरए। ३५ ४ तमा ભરેલુ છે એટલે કે મેહરૂપી મહાવમળમાં વિષયભેગની ઈચ્છાથી આમ તેમ ભ્રમણ કરતા જીવે ત્યા ડૂબેલા છે તથા પશુ, પક્ષી નારડી, નર, દેવ આદિ ઊ ચી નીચી નિમાં પરિભ્રમણરૂપ તરગોમાં તેમાં ઉછળી રહ્યા છે, અને વિવિધ દારુણ ૬ થી પીડાતા ના આકદ રૂપ પવનના આઘાતથી જ્યા દુ અરૂપ મહાત ગે જન્મ, જરા મણ રૂપ જળને ખળભળાવી રહેલ छ “पमाद-बहु-चड-दुसारयसमाहयउदायमाणगपूरघोर विद्वसणत्यवहुल " मा ससा२ ३पी सागरमा "पमाद" भध, विषय ४पाय निद्रा मन विsal, मे पाय प्रभा३पी " चड" य२ "दुद्रसारय" शे; भावना (55 प्र ४७
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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