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________________ सुदशिनी टीका भ० ३ सू० १९ ससारसागरस्वरूपनिरूपणम् कर्माणि तान्येव ये प्रस्तरासागरपापाणरूपास्तैः कृत्वा 'तरगरिंगत ' तरङ्गरिङ्गत् -तर कल्लोलेः रिगत्-चलत् 'निचमच्चुमयतोयपट्ट' नित्यमृत्युभयतोयपृष्ठनित्य-अ मृत्युभय-मरणभयमेन तोयपृष्ठ-जलोपरितनभागो यन स तथा त महापापाणाद्याचातोत्थितमहातरगचञ्चलनलौवमृत्युभयसकुलः सागरो यथा भरति तथा समारोप भर्त्सनापमाननादि नानाट सफलपदज्ञानावरणादि क्लिाटकर्म पापाणसमुत्थित पुन' पुनर्जन्मजरामरण मयतरगव्याप्त इत्यर्थ । 'कमायपायाल. कल्ससफुल' कपायपावालकलशसकुल पाया शोधायश्चत्वारस्ते एव पातालकलशास्तैः सङ्कलो यः स तथा त, 'भवमयसहस्मनलसचय' भवशतसहस्रनलसञ्चय भवगतसहस्राप्येयजलसञ्चयः = जलराशियन स तया तम् , ' अणत' कर्मरूप पापाणों से उठी हुई, (तरगरिंगत ) तरगों से जो चचल चना हुआ है, तथा जो (निच्चमच्चुभय) अवश्यभावी मृत्यु के भयरूप (तोयपट्ट) जलके उपरितन भाग से युक्त हो रहा है, अर्थात-जिस प्रकार समुद्र महापापाणों आदि के आघात से उत्थित महातरगों से चचल तथा जल से भरा हुआ होने के कारण मृत्यु के भय से सकुल होता है उसी तरह ससार भी भत्र्सना अपमान आदि ननादुःखरूप फलको देने वाले क्लिष्टकर्मरूप पापाणों से समुत्थित चार बार जन्म, जरा, मरण, के भयरूप तरगों से व्याप्त हो रहा है । (कसायपायालकलससकुल) तथा यह ससार सागर क्रोधादिक चार कपायरूप पाताल कलशों से युक्त है (भवसयसहस्सजलसचय ) लाखों भवरूप जलसचय से यह युक्त है। (अणत) अनन्त ससारी जीवों की अपेक्षा यह अन्त ATERAL म३५ पापाथी पहा ये “तरग रिंगत " तशाथी २ ययण अनेस छ, तथाले “निश्चमच्चुभय" अवश्य लावी (०४३२ थनारा) भृत्युना लय३या " तोयपट्ट " तिन भागथी युत छ, मेवा ससार સાગરમાં તે પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે– એટલે કે જેમ સમુદ્ર મહાપાષાણે આદિના આઘાતથી ઉત્પન્ન થયેલ તર ગોળી ચ ચળ બનેલ હોય છે તથા પાણીથી ભરપૂર હોવાને કારણે તેમાં પડનારને માટે મોતને ભય રહે છે તેમ સસાર પણ ભત્સના અપમાન આદિ વિવિધ દુખરૂપ ફળ દેનારા કિલષ્ટ કર્મરૂપ પાષાણેથી ઉત્પન્ન થતા, વાર વાર અનુભવાતા જન્મ, જરા, મરણું આદિના मय३५ तर गायी व्यास छ “कसायपाचालकलससकुल तथा मा ससार सासर १५ माहि उपाय३५ पाता शाथी युत छ " भवसयसहस्सजल सवय" सा सप३५ सयथी ते युधत छ “ अणत" मनन्त ससारी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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