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________________ ३६३ सुशिनी टीफा ३ सू० १९ ससारसागरस्वरूपनिरूपणम् वीचि-चिंतापसग पसारिय - बहनपमहल्लपिउलकलोल फलुणपिलवियलोभालकलतमोलपहल ' तत्र' सजोगनिजोगनीचि' सयोगवियोगा एवं वीचया तरङ्गा यत्र स तथा, समुद्रो यथा-जन्तरगयुक्त एव ससारोऽप्यनिष्टसयोगेष्टवियोग रूप-तरङ्गयुक्त , तथा 'चिंतापसगपसारिय' चिन्ताप्रसङ्गप्रसारिता गोकसम्ह विस्तृतः 'वाधमहलविउल्कहोल' वधमन्यमहाविपुलालोलाः, तर वधाः = यष्टयादि ताडनानि, कन्या रज्ज्यादि पन्चनानि तान्येव महान्तः सुदीर्घाः विपुला विशालाच क्लोला: महातरगा यत्र स त, तया ठुरिलवियलोहकररलतपोलपहुल' रुगविरपितलोभकलक्लायमानगोल्बहुला करुणपिलपित सागर का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि जिस प्रकार समुद्र का वाय परिधिमडल होता है उसी तरह इस ससार रूप समुद्र का चाधमडल चतुर्गतियों में परिभ्रमण करना रूप है। जिस तरह समुद्र अपार जलराशि से मदा परिपृणे रहता है, उसी तरह यह ससार भी जन्म जरा एव मरण जन्य गभीर दुखम्प जल से पूर्ण भरा हजा है। (सजोग विजोग वीचिं-चिंता पसग-पसारिय-बह-ध-महल-विउल-कलोल कलुण-विलविय-लोभकलकलतगोलमहल) इस ससार मे (सजोग विजोग दीचिं) अनिष्ट सोग एव इष्टवियोग जीवों को प्रतिक्षण प्राप्त होते रहते हं सो ये अनिष्टसयोग इप्टवियोग ही इसमे वीचि-लहरों जैसे हैं । तरा (चितापसगपसारिय ) विविध प्रकार के शोक समूह से यह विस्तृत हो रहा है। (घनघ) वच-यप्टयादि द्वारा वाधना ये ही जिसमे (महल) रडी २ (विउल) विशाल ( कलोल ) कल्लोलें है। કરતા કહે છે કે-જેમ સમુદ્રનુ બાહ્ય પરિધિમડળ હોય છે, એ જ પ્રમાણે આ સ સાર રૂપી સમુદ્રનુ ચતુર્ગતિમાં ભ્રમણ કરવા રૂપ બાહ્યપરિધિમડળ છે જેમ સમુદ્ર અપાર જળ રાશિથી સદા પરિપૂર્ણ રહે છે, તે જ પ્રમાણે આ સ સાર પણ જન્મ, જરા અને મરણ જન્ય ગભીર દુ ખરૂપી थी पूरेपूदे। लरेसा छ "सजोगविजोगवीचि-चिंता पसग पसारियवहब धमहल्ल पिउलकल्लोलग्लुणविलवियलोभकलकलतपोलपहुल " 0 ससारमा "सजोगविजोगवीचि' मनिष्टना वियोग सवार दो साणे प्रात यया કરે છે તે અનિષ્ટ સ ગ અને ઈષ્ટવિગ જ તેમાં વિચિ-લહેરે જેવો છે तथा "चिंतोपसगपसारिय" विविध प्रश्न उसडथी ते विस्तृत थर्ड २स छ "वह्वध" १५-यटरी माह ारा ५ धन सभा “महल्ल" मोटा भाटा “ विउल " विum "कल्लोल" भागत समान छ “कलुणविलविय"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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