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________________ प्रययाकरणसूत्रे अङ्गारपटीप्तकरयाऽत्यर्थशीतपेदनाऽऽया 'नोटोणसनादः शतममभिभूते, तत्र ' अहारपलित्तगप्प ' प्रदीप्ता = अनिममलियो योमाः = धूम रहिताहिस्तेन कल्प तत्सदृशम्-उग्ण, नया 'मायसीयोयगा गामायणो' अत्यर्थं शीत अत्यर्थ हिमकालोपशीत तयादिना तस्याः आपादन-पापण तेन ' उदिण्गसययपुस्म्पसप । उदीर्णानि समुद्भवानि यानि सतत दुःख शतानि भने शतसख्यकनिरन्तरदुःखानि, ते. ' समभिभूए 'समभिभूत = युक्तः यः स तथा तस्मिन् , यद्वा-उगीतवेदना, सा कोदशी ? इत्याह आशा तनेन-चिरकालानुगन्धिकटुक फलदायकाऽदत्ताऽऽदानननिताऽगातवेदनीयकमेणा उदीर्णा प्रकटिभृता तस्याः जनितानि यानि सातदुखशतानि तैः सममिभूतः =च्याप्तो यः स तथा तस्मिन्नेव भूते नरके अदत्ताऽऽदायिनो मृताः सन्तो गच्छ न्तीति पूर्वेण सम्बन्ध । तर नरके गत्वा सन्तप्त लोहवालुका निकराग्यरकठोरसूची के जैसी उष्णता, और (अच्चत्यसीय ) हिमफाल जैसा अत्यत शीत है। यहा नारकियों को इस उप्णता और शीत की (वेधणा आसायणो दिण्ण ) वेदना की प्राप्ति से उदीर्ण-उत्पन्न (सययदुक्खसय) निरन्तर सैकड़ों दुःख प्राप्त होकर (समभिभूए) दुखित करते हैं। " आसा दन " यह पद जो सूत्र में आया है उसका अर्थ एक तो प्राप्त होना हैजैसा कि अभी लिख दिया गया है। तथा दूसरा अर्थ इसका इस प्रकार से है-कि वे अदत्ताग्राही चोर जो वहा मर कर नारकी की पर्याय से उत्पन्न हो चुके है चिरकालानुवधी-भव भव में कटुक फल दायक अदत्तादान के प्रभाव से उत्पन्न हुए अशात वेदनीय कर्म के द्वारा प्रकटी भूत वेदना से व्याप्त उन नरको में निरन्तर सैकड़ो प्रकार के दुःखो को गकप्प" मति पतित मा ७ Y भने “अच्चत्वसीय" हिमा २७ सत्यत शीतल छे त्या नाही नि ते त भने शीतनी " वेयणा आसायणो दिण्ण " बेहनानी प्रातिथी अस्पन्न ये “ सययदक्ससय " से 31 हुमो निश्तर " समभिभूप" भी ४३ छे “ आसादन " मा पहने। सूत्रमा ઉપગ થયે છે તેને એક અર્થ તે “ પ્રાપ્ત થયું ” છે, જે સૂત્રમા હમણું જ અપાય છે તથા તેને બીજો અર્થ આ પ્રમાણે છે-–તે અદત્તગ્રાહી ચાર કે જે મરીને નારકીની પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થઈ ચુકયો છે, ચિરકાલાનુબ ધીભવભવમા કડવા ફળ દેનાર અદત્તાદાનના પ્રભાવે ઉત્પન્ન થયેલ અશાતા વેદનીય કર્મ દ્વારા ઉત્પન્ન થયેલ વેદનાથી વ્યાપ્ત તે નરકમાં નિરતર સેકડે દુખે ભગવ્યા કરે છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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