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________________ सुदर्शिनी टीका २०३ सू०१५ यीदृशाश्चौरा फीदृश फल लमन्ते ? ३३१ टीका-'अदतिदिया' अदान्तेन्द्रियाः अगेन्द्रियाः 'वसट्टा' वार्ता शब्दादिपिया सक्तिपीडिताः 'नमोहमोहिया' बहुमोहमोहिता प्रचुरऽनानम् ठिताः 'परपगम्मि लुहा' परवने लुम्मा-परद्रव्यतणावन्त इत्यर्थः, 'फासिदियविसयतिब्बगिदा' म्पर्शेन्द्रियविपयतीनद्धा सर्गेन्द्रियपिये स्व्यादौ गाढामक्ताः 'उत्थिगयरूपमदग्सग पहरतिमहियभोगतण्डाइया य' स्त्रीगतरूपगन्नरसगन्वेष्टरतिमहितभोगतृष्णार्दिताश्च-तन बीगताः स्त्रीसम्बन्मिनो ये रूपगदरमगन्धास्तेपु इप्टा अभीप्सिता या रतिः रमण तथा बी गत एन महितः = पाच्छितो यो भोगः= गिलास. तयो र्या तृष्णा तया अर्दिताः-पीडिताः ‘वगतोसगा' धनवोहैं ? यह कहते है- अदतिदिना' इत्यादि । टीकार्थ-(अदतिदिया) ये अदत्तग्राही चोर (अदतिदिया) ऐसे होते हैं कि इनकी इन्द्रिया इनके कामे नही रहती है, (वसहा) शब्दादिक विपयों में ये अधिकरूप में आसक्तिवाले होते है, (बहुमोह. मोहिया) अज्ञानकी सत्ता इनमें अधिकसे अधिक रहती है (परवणम्मिलुद्दा) परके द्रव्यमें इन्हें वहत भारी तृष्णा रहती है। (फासिदियचिसयतिव्यगिद्वा ) स्पर्शन इन्द्रियके विपरभूत स्त्री आदि पदार्य में इनकी गाढ आसक्ति होती है। (इत्यिगयख्वसहरसगट्ठरहमदियभोगतण्हादया य) (इत्यिगय) स्त्री सनबी ( स्वसदरसगवडठ्ठरह ) रूप शब्द, रस, गधमें इच्छानुसार रमण करने की तथा (महिघ) स्त्रीके भोगनेकी चान्छा इनमें अधिक रहती है । परन्तु (भोगतण्हाडा) उन भोगोंकी पूर्ति नहीं हो सकने के कारण ये उनकी तृष्णासे रातदिन ते सूत्र२ मताचे छ– 'अतिंदिया " त्या: टी -" अदतिंदिया" ते महत्तायाही यो सेवा डायतभनी धन्द्रियो ७२ तेमनी आडात नथी, “वसट्टा " हा विषयोभा ते पधारे प्रभाएमा मामान खाय छ, "बहुमोहमोहिया " तमना ५२ माननी मत्ता वारेमा थारे या छ, “परवणम्मि लुद्धा" ५२धनना तृप्त तमनामा gr पधारे हाय , “फासिदियविसयति चगिद्धा" म्प ન્દ્રિયને વિષયભૂત સ્ત્રી આદિ પદાર્થોમાં તેમની તીન આસકિત હોય છે, " इत्थिगयरूपसदरसगवइगुरइमहियभोगतण्डाइया य " " इत्थिगय" स्त्री सधा " रूपमदरसगध इदुरइ" ३५, ६, अन गया २ानुभा२ २मय “ महिय'२पानी तथा स्त्रीय माथे २तिरभए २वानी वासना मनामा धारे सय छे ५५ " भोगतण्हाइया" ते माग पूरा नही थवाने , तभनी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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