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________________ ३१८ प्रश्नध्याकरण गोम्मिक पहारदुम्मणा निभच्छणकडुयवयणभेसणागभया भिभूया अक्खित्तणिवसणा मलिणडंडिखंडवसणा उक्कोडालं. चनपासुम्मग्गणपरायणेहिं गोम्मियभडेहिं विविहेहिं वधणेहिं किंते-हडिनियडयालरज्जुयकुडडगवरत्तलोहसंफल हत्यद्ध य वज्झपट्टदामकणिकोडणेहि अण्णेहि य एवमाइएहि गो. म्मियभंडोवगरणेहि दुक्खसमुदीरणेहि सकोडणमोडणेहि वज्झति मदपुण्णा ॥ सू० १३ ॥ टीका-तहेर' तथैव-पूर्वोक्तमकारेण 'के' केचित् 'परस' परस्य 'दर' द्रव्य चोरयितु 'गवेसमाणा' गवेपयन्ता अन्वेषण कुर्वन्तः 'गहिया' गृहीताः-राजपुरुपैनिगृहीता हताच ताडिताः दण्डादिभिस्ततोगद्धाः रज्ज्वादि भिन्धन प्रापिताः तथा-रुद्वाः कारागारादी निरुद्वाय तुरिय' त्ररित-शीघ्रम् 'अधाडिया ' अतिधाटिताम्राजपुरुमिता. कुत्र ? इत्याह-पुरवर सकल नगरम् । नागरिकजनान् प्रतिदर्शिता इत्यर्थः पुनश्च 'समप्पिया' समपिताम् अथ सूत्रकार "जहा फल देह" इस चतुर्थ द्वार का प्रतिपादन करते है-'तहेवकेइ' इत्यादि । टीकार्थ-(तहेव) इसी पूर्वोक्त प्रकार से (केइ) कितनेक व्यक्ति (परस्स दव्व गवेसमाणा) पर के द्रव्य को चुराने की खोजमें रहते हुए (गाहिया य) राजपुरुपो द्वारा निगृहीत होकर (हयाय) दण्डादिका द्वारा ताडित किये जाते है (घद्धा) रज्ज्वादिको द्वारा बाध दिये जाते है (रुद्धाय) कारागार आदि में बंद कर दिये जाते है । (तुरिय अइधाडिया पुरवर) और नगर निवासियो के समक्ष नगरभर में घुमाये जाते हैं। वे सूत्रा२ “ जहा फल देइ" से याथा दा२० प्रतिपादन ४२ छ" तहेव केइ " त्यादि All-"तहेव" पूर्वरित प्रशारे “केई" मा सोही "परस्स दव्व गवेसमाणा" ॥२४ना द्रव्यने यारवानी शोधमा २९ छ “गोहियाय' ते। शा२१ ५४ाईन हयाय" को हरा भराय छ "बद्धा" ह।२७ मा 43 सपाय छ, “रुद्धाय” भने समाना माहिमा । ४२4 छ, “तुरिय अइघाडिया पुरवर "मने शशमानी समक्ष मामा शरभा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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