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________________ - प्रनाम्याकरण शब्दायमान हसित-हसन तेन भीपणक भयानकमतएर निरभिरामम् अमुन्दर यत्तत्तया तर, तथा अदुन्भिगधे' अतिदरमिगन्धे-शटितमतकफलेवदुर्गन्ध युक्ते, 'वीभच्छदरिसणिज्जे ' वीभत्सदर्शनीये धीमत्सं-अस्थिमृतकालेवरादि युक्तखाज्जुगुप्सोत्पादक दर्शनीय दर्शन यस्य तत् तम्मिन् 'ससाणे' श्मशाने 'वणे' बने अरण्ये च तथा 'मुण्गघरलेणअतरावणगिरिकदरेस' शून्यगृहलय नाऽन्तराऽऽपणगिरिकन्दरेपु-शून्यानि गृहाणि अन्तरापणाम् अन्तरा-ग्रामादीना मर्द्धपये विश्रामार्य निर्मिता आपणागृहाम्ग्रामागायः गिरिसन्दराणि चगिरिंगहराणि, तेपु, तथा-'सिमसामयसमाउलामु रिपम श्वापदैः हिस्रमाणि मि समाकुला-व्याप्ताः तास्वेव विधासु 'वसहिमु सतिपु-यासस्थाने "कालस्सता' क्लिश्यन्ता दुःखानि प्राप्नुवन्तः, 'सीयायासोसियसरीरा' शीतातप शोपितशरीरा' = शीतैरावपैश्च शोपितानि शरीराणि येपां ते तथा 'ददृच्छवी' लिये इस विशुद्ध कह कह ध्वनि सयुक्त पिशाचों के हास्यसे जो (बीह ग) भयप्रद और (निरभिरामे ) असुन्दर बने हुए हैं (अदुन्भिगधे) अतिदुरभिगध-सड़े हुए मृतकों के कलेवरों की दुर्गन्ध से जो युक्त हो रहा है (बीभच्छदरिसणिज्जे ) तथा जो हाड मृतक कलेवर आदि से युक्त होने के कारण घृगोत्पादक दिसलाई पड़ते हैं ऐसे (सुसाणे) उन श्मशानों मे (सुण्गधर ) शून्य गृतों में, (लेण ) लयनों में-पर्वतो क निकटवर्ती पाषाणगृहो में, (अतरावण ) ग्राम आदिकों के आधे माग में विश्राम निमित्त बने हुए घरों में, (गिरिकदरेसु) पर्वत की गुफाओं में, तथा (विसमसावयसमाउलासु) हिंसक प्राणियों से युक्त (वस हिस्सु ) वसतियों में-वासस्थानों मे, (किलिस्सता) नाना प्रकार के दुःखों को सहन किया करते है। तथा (सीया य वसोसियसरीरा। शीत और आतप से इनके शरीर शोषित-सूके हुए रहते हैं। (द. મુખમાથી નીકળતું હોય છે, તેથી પિશાચના તે વિશદ્ધ કહેકહ વનિ યુક્ત हास्यथी ने "बीहणग" लय ४२ भने “निरभिरामे" असुह२ मनस छ, “ अइदुन्भिगधे " भ31 मृत सेवरानी गतिशय दुग-धीरे युक्त छ, 'वीमच्दरिसणिज्जे" तथा 331, भु! माहिया युक्त हावाने १२ धान पाय छ, मेवा “ससाणे" श्यशानाभा, "वणे" पनामा, "सुण्णघर" शून्यधरोभा, "लेण" सयनोमा पनी सभीपना पाषाणुगुडामा "गिरिकदरेसु" पतनी गुशमामा, तथा "विसमसावयसमाउलासु" (SA/ प्राणीमाथी युटत "वसहिसु" निवास स्थानाभा, "किलिस्सता" विविध प्रारनामो सडन या ४२. छे तथा “ सीया य वसोसियसरीरा" शीत अने तापथी तमना श२२ २३ २९ छ “ड्ढच्छवी तमना शरीरनी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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