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________________ इट resererret m ' टीका' ते य' ते च पूर्वोक्तमपाराननाः 'गामा गरनगरखेड कब्वडमडवदोणमुपट्टणासमणिगम जणवए । ग्रामाकरनगरसेटर्वटमडम्बद्रोण मुखपचनाथमनिगमजनपदान् = तत्र ग्रामः ग्रसति उद्धघादिगुणानिविद्यामः, आकरः = सुवर्णरजतादि धातूना खनिस्थान, नगर = अष्टादशरुरार्जित, खेट = धूटिप्राकारमय, कर्बट = अल्पजन निवासस्थान, मढम्म सार्वक्रोशद्वयग्रामान्तर शून्यः द्रोणमुख जलस्थलमार्गो यत्र भवेत् तद्द्रोणमुख, पत्तन =सकास्तुमाप्तिस्थानम् आश्रम = " परद्रव्य हरण करने वाले तस्करजन फिर क्या करते हैं ? सो इस सूत्र द्वारा सूत्रकार प्रदर्शित करते है - ' गामागर० ' इत्यादि । टीकार्थ - ( धणसमिद्धे गामागरनगर खेडकटमवदोणमुहपह णासमणिगमजणवए) धनधान्यादि से समृद्ध हुए ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मड, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, निगम एव जनपद, इन सब को (ते य) परद्रव्य हरण करने वाले चोर आदिक (हणति ) नष्ट कर देते हैं । जहा बुद्ध्यादिगुणों का ह्रास होता है वह ग्राम है। सुबर्ण रजत आदि धातुओं की उत्पत्ति का जो स्थान होता है उसका नाम आकर है । अठारह प्रकार का राजकर जिसमें नहीं लिया जाता है उसका नाम नगर है। धूलिका प्राकार जिसमें होता है उसका नाम खेट है । जिसमें थोड़ेसे मनुष्य निवास करते है उसका नाम कट है । चारो दिशाओं में अढाई २ कोसतक जिसके आसपास में गाव नही होते है उसका नाम मडब है । जलमार्ग के एव स्थलमार्ग दोनों प्रकार के मार्ग से होकर जिसमें जाया जाता हो उसका नाम द्रोणमुख है । सकल वस्तुओं की प्राप्ति का जो પરદ્રવ્યનું હરણ કરનારા ચાર પછી શુ કરે છે? સૂત્રકાર આ સૂત્રદ્વાર ते अगर उरे" गामागर " धत्याहि टीडार्थ–“ धणसमिद्धे गामागारनगरखेड कन्बडमडवदोणमुह पट्टणासमणिगम जणवए ધનધાન્યથી સમૃદ્ધ અનેલ ગામ, આકર, नगर, जेट, ज्र्जंट, J भडम, द्रोण, पत्तन, आश्रम, निगम ने यह से अधाना " तेय " પરધન હરી લેનાર ચાર આદિ લોકો નાશ કરે છે જ્યા બુદ્ધિ આદિ ગુણાના હ્રાસ થાય છે તે ગામ છે સેનુ, ચાદી આદિ ધાતુઓના ઉત્પત્તિ સ્થાનને આકાર ખાણ કહે છે. અઢાર પ્રકારના રાજકર જ્યા લેવાતા નથી તેને નગર કહે છે ધૂળના કિલ્લેા જ્યા હાય છે તે સ્થાનને ખેટ કહે છે જેમા ઘેાડા જ માણુસા વસતા હોય તે સ્થાનને કટ કહે છે જેની આસપાસમા અઢી ગાઉમા ગામ હાતા નથી તેને મડમ કહે છે જ્યા જળમાગે તથા સ્થળમાર્ગે જઈ શકાય છે તે સ્થાનને દ્રોણુમુખ કહે છે જ્યા અધી વસ્તુઓ મળી શકે છે તે ""
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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