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________________ सुदर्शिनी टीका म० ३ सू० ९ यदत्तादानविषयमागरनिरूपणम् ओखुभियलुलियखोखुम्भमाणपक्खलियचलियीवउलजलचक्कवालमहानइवेगतुरियआपूरमाणगभीरविउलआवत्तचंचलभममाणगुप्पमाणुच्छलतपच्चोणियतपाणिय - पहावियखरफरुसपयंड वाउलियसलिलफुटतवीचिकल्लोल सकुल, महामगरमच्छकच्छभोहारगाहतिमिसुसुमारसावयसमाहय समुद्घायमाणयघोरपउ।।९॥ टीका-अपि च परद्रव्यहरानराः 'रयणागरसागर च ' रत्नाकरसोगर च% रत्नानामाकर:-निरिभूतो य' मागर समुद्रस्त भविश्य तन्मध्ये गत्वा पोतान् घ्नन्ति, इत्यग्रेण सम्बन्ध , कीरा सागरम् ? इत्याह-' उम्मीसहस्समालाकुलविगयपोयकलफलतफलित' ऊर्मिसरत्रमालाकुलरिगतपोतकालकळकल्तिम् - उर्मीणां वरगाणा सहस्रमालाभि =सहस्रसख्यकपक्तिपिराकुलत्वात् विगताः- भग्नाः ये पोताः नौकाः 'जहाज-'स्टीमर' इति प्रसिद्धा तेपा-तत्र स्थिताना व्यापारि 'अदत्तादान किस प्रकार किया जाता है ? ' अब सूत्रकार इस पात को समझाते है-' रयणागर ' इत्यादि । टीकार्थ-पर के द्रव्य को हरण करने में तत्पर बने हुए मनुष्य चोर (रयणागरसागर च) रत्नो के निधिभूत समुद्र में घुस कर केउसके मध्य में जाकर के जहाजो को नष्ट कर देते हैं, इस प्रकार का सयध यहा लगा लेना चाहिये । अब सूत्रकार समुद्र का वर्णन करते हैं(उम्मीसहस्समालाकुलविगयपोयकलकलतकलित ) हजारों लहरों के समूह से आकुल होने के कारण जहा पर व्यापारी आदि जनो के जहाज नष्ट हो जाते है, और इसी कारण उन जहाजों पर बैठे हुए व्यक्तियो “અદત્તાદાન–ચેરી કયી રીતે કરાય છે” એ વાતન સૂત્રકાર હવે સમ छ-" रयणागर" त्या ५२धन पाने मातु२ मनसा मनुष्य-यार " रयणांगरसागर च" રત્નોના નિધિ એવા સમુદ્રની વચ્ચે જઈને જહાજોને ડૂબાવી દે છે, એ સબ ધ અહી જોડવાનો છે--હવે સૂત્રકાર સમુદ્રનું વર્ણન કરે છે " उम्मीदहसमालाकुलविण्यपायकल कलतकलित " तरी भाभाना સમૂહના મણને કારણે જ્યા વ્યાપારી આદિ લેકના જહાજે નાશ પામે છે, અને તે કારણે તે જહાજમાં બેઠેલા લેકેના કકળાટથી જે યુક્ત બનેલ છે,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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