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________________ सुदर्शिनी टोका भ० ३ सू० ३ पञ्चमान्नारगततस्करस्वरूपनिरूपणम् २७३ घातका पथि-मार्गे जनाना घातका द्रव्यलुण्ठनार्य प्रहारकाः आदीपकाच गृहाटिदाहकाः तीर्यभेदका-यारिजनपनापहारकाच 'लहुरत्यसपउत्ता' लघुहस्तमम्प्रयुक्ता लघु'परद्रव्यहरणे निपुणो दस्त'-हस्तव्यापारपरायणाः, 'ज्यगरा' तकरा', 'खडसम्यस्थीचोरपुरिमचारसपिच्छेयया य ' खण्डरक्षत्रीचौर पुरुषचौरसन्धिच्छेदका' = तत्र ग्वण्डरक्षा शुल्कपालाः उत्कोचग्राहित्माचौराः, स्त्रीचौरा स्त्रियचोरका. स्त्रीसमामाचौरका' स्त्रियमेव चोरयतीति स्त्रीचोरकाः, तथा स्त्री वेशेन चोरका पा । तथा पुरुष चौराध मन्धिच्छेदका मन्धि-भित्यादी विवर 'संघ' 'सार' इति मापा प्रसिद्ध छिन्दन्ति सनन्ति ये ते सन्धिच्छेदका 'गठिभेयगा' ग्रन्थिभेदापसिद्वाः 'परपणहरणलोमारहारअक्खेगी' परको विध्वम कर देते है । ( पथपायग) द्रव्य हरण करने के अभिप्राय से मार्ग में चलने वाले मनुष्यों को ये टेम्बते • मार डालते है ।(आदी वग) गृहादिको में आग लगा देने है। (तित्यभेयगा ) यात्रिजनों के भी द्रव्य लूट लिया करते हैं । (लहत्यसपउत्ता ) हाथकी सफाई इनकी इतनी जबर्दस्त होती है कि ये देखते २ टी दूसरों के धन को चुरा लेते है। (खटर सत्थीचोरपुरिसचोरसधिच्द्रयया य ) इसी तरह जोखड रक्ष-शुल्कपाल होते है ये जो घूमखोरी करने वाले होते है वे चोर माने जाते हैं वे पता लिये गये हे स्त्रीचोर-स्त्रिो के पास से द्रव्यादि चुराने वाले, अथवा स्त्रियों को उठाकर ले जाने वाले, अथवा स्त्री के वेश में रहकर चोरी करने वाले होते है, उसी प्रकार पुरुपचोर भी होते हैंपुस्पों के पास से न्यादिक चुराने वाले होते हैं, अथवा पुरुपों को धोखा देकर इधर उधर ले जाने वाले रोते हैं अथवा पुरुप के वेश में ना " पथवायगा" द्रव्य शोवाने भाटे तेथे। अपामामाने नेत नेतामा भाग नाणे “आटीग" ५२ पोरेमा मास "तित्यभेयगा" यात्राणुना द्रव्यने ५४ सूटी से छे, "लढुहत्यसपउत्ता" योरी २ વામાં તેમને હાથ એટલે કુરાળ હોય છે કે તેઓ જોત જોતામાં અન્યનું धन योग से छे " सडरक्सत्थीचोरपुरिमचोरमधिच्छेयचा य ” मेर પ્રમાણે જે ખડરલ-ગુલકપલ હોય છે-જે ઘૂસી કરનારા (લાચ લેનાર) હોય છે તેમને ચોર ગણવામાં આવે છે સ્ત્રીર–સ્ત્રીઓની પાસેથી દ્રવ્ય ચોરનારા, અથવા સ્ટાઓને પાડી જનાર અથવા સ્ત્રીના વેરામાં જઈને ચોરી કરનારા હોય છે, એ જ પ્રમાણે પુરુષો પણ હોય છે- પુરુષોની પાસેથી દ્રવ્યાદિકને ચોરનારા, અથવા પુરુષોને દગો દઈને ગમે ત્યા લઈ જનાગ, અથવા પુરૂષના
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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