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________________ प्रश्नग्याकरणम् परफे धनका अपहरण होता है इसलिये मम नाम अपहरण है१० । पर द्रव्य चुरानेमे हाथकी कुगलना काम देती है, अथवा परद्रपके चुगमेसे हायमें लघुता-नीचता आती है इमलिये इसका नामरनल उत्य है ११॥ यह कृत्य पापानुष्ठान स्वरूप है, इसलिये हमका नाम पापकर्मकरण है १२ । यह चोरों का कम है इमलिये हमका नाम स्तन्य है। १३ । पर द्रव्यके हरण से हरने वाले का नाश ही हो जाता है । इसलिये इमका नाम हरण विप्रणाश है १४। दमरों की अनुमति बिना ही धनादिकका इसमे ग्रहण होता है इसलिये इसका नाम आदान है १५ । दूसरों के द्रव्य का हरण करना ही द्रव्य का पिनाग करना है, इसलिए इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १६ । कोई भी पुरुष चोरों का विश्वास नहीं करता है, अत. अविश्वास का उत्पादक होने से इसका नाम अप्रत्यय है १७ । द्रव्य का हरण हो जाने से दूसरों की पीड़ा होती है इसलिये पर को पीड़ा का कारण होने से इसका नाम अपपीड है १८ । परद्रव्य का इस क्रिया से विच्छेद होता है, अर्थात-चोरे गये द्रव्य को चोर यद्वा तदा खर्च कर डालते है, यही पर के द्रव्य का विच्छेद है इसलिये इसका नाम परद्रव्यविच्छेद है १९। स्वामी के हाथ से यह चुराया हुआ द्रव्य निकल जाता है-चोरों के हाथो में आ जाता है, इसलिये इसका " तस्करता” छ (१०) तभी धननु अ५४२५ थाय , तेथी तेनु नाम अपहरण छ (११) ५२धन थापामा डायना शत आवे छ, अथवा પરધનની ચેરીથી હાથમાં લઘુતા-નીચતા પ્રવેશે છે તેથી તેનું નામ કૃતવૃત્વ छ (१२) ते कृत्य पापत्य पाथी तनु नाम पापकर्मकरण छ (१३) ५२ ધનનું અપહરણ કરવાથી હરનારને નાશ થાય છે, તેથી તેનું નામ દુક્કવિ પ્રણારૂ છે (૧૫) બીજાની અનુમતિ વિના જ તેમાં ધન આદિ ગ્રહણ કરાય છે, તેથી તેનું નામ ભાન છે (૧૬) બીજાના દ્રવ્યનું હરણ કરવું એ જ द्रव्याना विना य छ, तेथी तेनु नाम परद्रव्यविच्छेद छ (१७) छपए માણસ ચારેને વિશ્વાસ કરતા નથી એ રીતે અવિશ્વાસ જનક હોવાથી તેનું म "अप्रत्यय" छे (१८) द्रव्यनु अप९२५ थवाथी अन्यने पी31 थाय छ, तथा पीडानु २५ वाथी तेनु नाम “अवपीड" (१८) ५२धनना मा કિયાથી નાશ થાય છે, એટલે કે ચોર લેકે ગમે તે પ્રકારે તેને તેડફી નાખે छ । प्रमाणे ते द्रव्य विछे४ ४२रावना२ डापाथा तेनु नाम “परद्रव्य "विच्छेद " छ।२०) ते याशयेयु द्रव्य तेना भासिडन डायमाथी यायधने
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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