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________________ सुदर्शिनी टीका म० ३ सू० १ अदनादास्वरूपनिरूपणम् २५९ - हरदहे 'त्यादि-- 'हरदहमरणभयकलुमतास गपरसतगगिज्यलोभम्ल' हरदहमरणभयकलपनासन परसत्कगृद्धिलोभमूल, ता हर-हरण कुरू, दह-गृहादिक प्रधालय, इति वचनद्वय हरणदाहरिपये चोराणा प्रतिकारकम् । तथा मरण मृत्युः भय भीतिः कलप चम्पाप तन्त्रमर-भयजननम्मरूप यस्य तत्तथा, तच्च परसत्कदिलोभ मूल च-परसत्के-परकीयधने गृद्धिा=गामक्तिः तया लोभश्च-रौद्र यानयुक्तामूळ मूल कारण यस्य तनया 'कालविसमससिय' कालविषममश्रित च-कालः अर्धरामादिलक्षणः, निपमाणि पर्वतादिदुर्गमस्थानानि तैः सश्रितम् = आश्रित यत्तत्तथा । एतादृशेषु निर्जनस्थानेषु चाराः प्रायो निवसन्ति । तथा 'अहोअच्छि त्तादान है । यह कैसा होता है ? इस पर कहते है-यह अदत्तादान (हरदहमरण भयकलुल तासणपरसगगिज्झलोभमूल) (हर) इसके द्रव्य का एरण करलो, (दर) इनके गृादिक को जलादो, (मरण ) इसे मार डालो, इत्यादि रूपसे ( मय) भय दिखाकर दूसरो के द्रव्यादि का हरण करना, (कलुस ) एक दूमरों मे कलुपभाव जगाकर उनके द्रन्यादिक को ले लेना, (तासण) इत्यादि अनेक प्रकारसे त्रास पहुँचाना, तथा (परसतग) दूसरो के वन म (गिजिम ) आराक्ति रखना तया (लोभ) रौद्रध्यानसे युक्त इसमे मृभाष रखना, ये सब (मूल) अदत्तादान के मूल कारण हे । ( कालविसमससिय ) अर्धरात्र आदि काल तथा विपम-पर्वतादि दुर्गमस्थान, इनके द्वारा यह अदत्तादान सश्रित आश्रित होता है-बनता है, तात्पर्य इसका यह है कि जो अदत्तादानचोरी-किया करते हैं, वे चोर प्राय. अर्धरात्रि के समय में निकलते है, एव पर्वतादि दुर्गम स्थानो पर छिपे रहते है, इस अपेक्षा काल और तो ना याममा छ-त महत्ताहान "एरदहमरणभयकलुसतासण परसतगगिझलोभमूल" "हर" " मा व्यक्तिनु द्रव्य ५वी a “ दह" तेना ५२ साहिन भावी हो, “मरण ' तेने भारी नो" त्याशित "भय" मय तावीने न्यनु द्रव्य वस्त्र माहिरी आयु, “कलुस" मे भीत वय्ये ४सेस गाडीन तमना द्रव्य माहिने सयु, “तासण" त्याहिशत त्रास पायावा, तथा " परसतग" ना धनमा “गिज्झि" मासहित शमी तथा “लोभ " शैद्रव्यानथी युटत भूमाप तभा राणा ते मधा " मूल " भत्ताहानना भूण २ ले “कारविसमससिय" रात्री गाहि કાળ તથા પર્વતાદિ દુર્ગમસ્થાન તે અદત્તાદનના આશ્રય સ્થાને છે, એટલે કે જે અદત્તાદાનરી કરે છે તે ચોર સામાન્ય રીતે વ્યરાત્રે ચોરી કરવા નીકળે છે, અને પર્વતાદિ દુર્ગમ સ્થાનમાં છૂપાઈ રહે છે, તે અપેક્ષાએ કાળ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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