SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ अथ तृतीयमध्ययनम् । ___ व्याग्यात द्वितीयमधर्मद्वार साप्रत तृतीयमारभ्यते-अस्य च पूर्पण सहायमभिसम्बन्धः । द्वितीयाधर्मद्वारे यादृशनामादिनिर्देशपुरस्सरमली कवचनस्वरूपमुक्तम् । अटीकवचन च अदत्ताऽऽटायिनो न्वेति हेतो, मूत्रक्रमनिर्देशानुमाराच्च मृपापादानन्तरमुचितमाप्तमदत्तादान स्वरूपनामादिनिर्देपपूर्वक प्रदयते, तत्र पूर्वयोरपर्मद्वारयोरिवास्यापि 'बाहक १, यन्नाम २, यथा च कृत ३, यत्फल ददाति ४, ये च कुन्ति ५, इति पञ्चभिरन्तरनिरूपण चिकीपुरादौ क्रमप्राप्त 'यादृश' इति द्वारमाश्रित्य अदत्तादानस्वरूप निरूप्यते-'जयू तहय च' इत्यादि तृतीय आमव-(अधर्म) द्वार प्रारभदितीय आस्नव-(अधर्म) द्वार कहा गया, अर तृतीय आस्रय द्वार की व्याख्या प्रारभ होती है । इस अधर्मटार का पूर्व अधर्मद्वार के साय इस प्रकार से सबंध हे कि-दितीय आस्रव-(अधर्म) द्वार में (यादशनामादि निर्देश पूर्वक) अलीक ( झूठ)वचनका स्वरूप कहा है सो इस अलीक वचन को जो अदत्त को लेने वाले व्यक्ति होते है, वे ही योलते है तथा सूत्रक्रम निर्देश भी ऐसा ही है, इसलिये मृपावाद के अनन्तर उचितरूप से प्राप्त अदत्तादान का स्वरूप नामादि निर्देशपूर्वक इस अध्ययन में कहा जावेगा । जिस प्रकार पूर्व दो आस्रव (अधर्म ) द्वारा का सूत्रकार ने (यादृश यन्नाम) इत्यादि पाच अन्तर्वारों द्वारा निरूपण किया है उसी तरह से वे इस तृतीय आस्रव (अधर्म ) द्वार का भी निरूपण करना चाहते है इसलिये वे सर्व प्रथम इसमें क्रम प्राप्त अदत्तादान का ( यादृश ) इस द्वार को लेकर स्वरूप कहते हैं - ત્રીજા આસવ-અપ દ્વારનો પ્રારંભ બીજા આશ્વન-( અધર્મ) દ્વારનું કથન પૂરૂ થયુ, હવે ત્રીજા આસવ દ્વારનું વર્ણન શરૂ થાય છે આ અધર્મકારને આગળના અધર્મકાર સાથે मारीत म 2-y- साप-(अधम ) मा “ यादृशनोमादि निर्देशपूर्वक " Als क्यननु २१३५ अगट ७२पामा माव्यु छ ५५ ते २मसी વચને અદસ દીધેલુ લેનારી વ્યકિત જ બેસે છે, તથા સૂત્રકમ નિર્દેશ પણ એ જ છે, તે કારણે મૃષાવાદનું નિરૂપણ કર્યા પછી યોગ્ય રીતે અદદાનનું સ્વરૂપ નામાદિ નિર્દા પૂર્વક આ અધ્યયનમાં બતાવવામાં આવશે म माना मे आव१-(अधम) द्वारीनु सूत्रमारे "यादृश यन्नाम" त्यहि પાચ અન્ત દ્વારા નિરૂપણ કર્યું છે, એજ પ્રમાણે તેઓ આ ત્રીજા આત્સવ (અધમ) દ્વારનું પણ નિરૂપણ કરવા માગે છે તેથી તેઓ સૌથી પહેલા ક્રમ પ્રમાણે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy