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________________ सुदर्शिनी टीका अ० २ ० १६ अलीकनचनम्य फरितार्थनिरूपणम् ०५३ अथ मतद्वार साल्येन सफलग्य निगमयति मूनकार 'एसो सो' इत्यादि । मूलम्एसो सो अलियश्यणस्त फलविवाओ इहलोडओ परलोइओ अप्पनुहो बहुदुक्खो महभओ वहुरयप्पगाढो दारुणो ककलो असाओ वाससहस्सेहि मुच्चइणय अवेदयित्ता अस्थि हु मोक्खोक्ति, एवमाहसु नायकुलनदणो महप्पा जिणोउ वीरवर नामधेजो कहंसीय अलि यवयणस्त फलविवाग, एय त विइय पि अलियवयण लहुस्सग लहुचवलभणिय भयकर दुहकर अयसकर बेरकर अरतिरतिरागदोसमणसकिलेसवियरण अलियनियडिलातियोगवहल नीयजणनिसेविय निसंस अप्पच्चयकारग परमसाहुगरहणिज परपीडाकारगं परमकिण्हलेससहिय दुग्गडविणिवायवडण भवपुणब्भवकर चिरपरिचियमणगय दुरत त्तिवेमि ॥ सू० १६ ॥ ॥विइय अपम्मदार समत्त ।। २ ॥ टीका-'एसो सौ' एप स पलियवयणस्स' अलीकवचनस्य 'फलनिवाभो' फलविपाकः इहलोइजो' ऐहलोकिक मनुष्यभरापेक्षया 'परलोटओ' कि दुःसो के जितने प्रकार ह वे सब भयकर से भयकर इन्हें भोगना पड़ता ह । उस स्थिति में इनका कोई साथी नहीं होता है ॥ स्मू-१५॥ अव सूत्रकार इस अलिकवचन हार का सपूर्णरूप से सकलन करके फलितार्थ करते है-' एसो सो' इत्यादि । टीकार्य-(एलो सो अलिपश्यणस्स फल विचाओ) अलीक वचनका यह जो मनुष्यगति की अपेक्षा इहलोक सबधी तथा नरकनिगोदगति की એ છે કે દુખના ભયમાં ભયકર જે પ્રકારે છે, તે તેમને ભોગવવા પડે છે એ સ્થિતિમાં તેમનું કોઈ સાથીદાર હોતુ નથી સૂ-૧૫ હવે સૂત્રકાર આ કારનુ સ પૂર્ણ રીતે સકલન કરીને ફલિતાર્થ બતાવે छ-"एसो सो" त्यादि, जय-"एसो सो अलियत्रणस्म फलविवाओ" Als क्यननी मनुष्यातिनी અપેક્ષાએ આલેસ બધી તથા નરકગતિની અપેક્ષાએ પરલોડ સબ ધી આ જે ફલ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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