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________________ રકટ মশ্বকােণ णिसेविणो' नीचजननिपेरिणः जातिगुणममिनींचा ये जनास्पा निपेविणाउत्थानोपवेशनशयनभोजनपानादिभिः सहनियासिन 'लोगगरहिणिज्जा' लोक गहेणीयासाठजननिन्दनीयाः 'भिन्या' भृत्या:-मरणीया यान्ये तथा 'असरिसजणस्स पेस्मा' असदृशननस्य असमानशी रम्प-म्लेन्टाचारलोगस्य पेस्सा' भैष्याः तदाज्ञाकारकाः 'दुम्मेहा' दुर्मेधा सदबुद्धियजिताः, 'लोगोदअन्न प्पसमयमुहमज्जिया' लोकदा यात्मसमय श्रुतिवर्जिताः श्रुतिमन्दस्य प्रत्येक सम्बन्धात् लोकश्रुतिः ठोकाभिमत शास्र भारतादि., वेदश्रुतिः अग्यजु सामाई वेदशास्त्रम् , अध्यात्मश्रुतिः प्रात्मस्वरूपनिर्णायक शास्त्र, समयश्रुतिः अईत्मवचन तामिजिवाः रहिता ये ते तया, 'धम्मबुद्धिरिया' धर्मयुद्विविक्ला:-श्रुत चारित्रधर्मरहिता नराः मनुष्याः 'दृश्यन्ते' इति पूर्वेण सम्बन्धः । तथा 'तेण य' तेन च-पूर्वोक्तप्रकारेण 'अलिएण' अलीकेन-पापादेन ‘असतएण' (णीयजणणिसे विणो) नीच जनों के साथ ही ये उठा बैठा करते हैं और इन्हीं के साथ ये खाते पीते है तथा उन्हीं के साथ रहते हैं । (लोग गरहणिज्जा) समस्त जन इनकी निंदा करते रहते हैं। (भिच्चा) दूसरी के दास होकर रहते है (असरिसजणस्स पेस्सा) असमानशाल वाले-म्लेच्छाचार वाले-लोगो के ये दास होते है (दुम्मेहा) सद्धि से ये वर्जित होते हैं (लोगवेयअज्मप्पसमयसुइवज्जिया) लोकश्रुति वेदश्रुति, अ यात्मश्रुति और समयश्रुति से ये रहित होते है । लोकाभि मत भारत आदि शास्त्री का नाम लोकश्रुति है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, साम वेद, अथर्ववेद, इनका नाम वेदश्रुति है। आत्मा के स्वरूप के निणों यक शास्त्र अध्यात्मशास्त्र हैं। अत्प्रवचन का नाम समयश्रुति है। (धम्मबुद्विवियला) श्रुतचारित्ररूप धर्म से विमुख रहते हैं । तथा (तेण मने गोत्र मधम डाय छ, “णीयजणणिसेविणो" नाय सोडी साथ त ઉડે બેસે છે, તેમની સાથે જ તેઓ ખાય પીવે છે તથા તેમની જ સાથે રહે छ, “ लोगगहरणिज्जा" सा हो तभनी निहारेछ " भिच्चा" अन्यना हास थन २९ छ, " असरिसजणस्म पेस्सा" असमान शीसवा-छ या२ वाणा सोना तेसो हास थाय छ “ दुम्मेहा " तसा सहधुद्धि राहत हाय.. " रोगवेयअज्झप्पसमयसुसज्जिया" सोश्रति, श्रुति भव्य ત્મકૃતિ અને સમયકૃતિથી તેઓ રહિત હોય છે લેકાભિમત ભારત આદિ શાસ્ત્રોને લેકકૃતિ કહે છે, સર્વેદ, યજુર્વેદ, સામવેદ અને અથર્વવેદને વેદશ્રુતિ કહે છે આત્માના સ્વરૂપનુ નિર્ણાયક શાસ્ત્ર અધ્યાત્મશાસ્ત્ર છે અહંત પ્રવચન समयश्रुति ४९ छे "धम्मसुद्धिवियला " तसा तयारित्र - -- था
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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