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________________ २३४ प्रश्नन्याकरणस्त्र उपद्रवस्थानम् । 'घोरा सगामा बहतु ' घोग सग्रामा वर्तन्ताभरन्तु 'जयतु' जयन्तु-विजय प्राप्नुवन्तु च । 'सगडवाहणाइ य पबहतु । गस्टवाइनानि च प्रहन्तु शकटानि गन्न नानानि चौकादीनि महन्तु अचात्यन्तु । उवणयण चोळग विवाहो जन्नो अमुगम्मिहोउ दिवसे मुकरणे मुमुहत्ते मुनस्यत्ते सुविहिम्मि य' तर 'उपणयण' उपनयनकलाग्रहण 'चोल्ग' चोलक पालकाना प्रथम शिरोमुण्डन, विवाह पाणिग्रहण प्रसिद्ध 'जनो' चनः एतत्सर्वम् अमुगमि'अमुकस्मिन् दिवसे मुकरणे करणानि एकादश तन-मा-बालप-फोला-तैत्तिल-गर-वणिन विष्टयश्चैतानि सप्त करणाणि, शकुनि चतुष्पद नागकिंतुनानि चत्वारि स्थिरागि, इत्येपामन्यतमकरणे शुभे 'समुहत्ते' सुमुहर्ते गोभने रौद्रादिरिंशदन्यतमे 'मुन क्खत्ते' सुनक्षनश्चिन्यादिपु शोभने पुप्पादिके 'मुतिदिम्मि' मुतियी नन्दादिषु अन्यतमे ' होउ' भवतु । तया 'अन' अय अस्मिनहनि 'होउम्हाण' भवन स्नपन-मौभाग्यसन्ततिम यर्थ प्रधादे' स्नान प्रतिकास्नान च। किंभूत ? ही पक्षि समुदाय को नष्ट कर दो । (सेणाणिज्जाउ) सेना यहासे निकले और निकल कर उपद्वग्रस्त स्थान पर जावे (घोरा सगामा वस्तु जयतु) वहा घोर सग्राम वह करें और विजयश्री को पावे ( सगडवारणाइ य पवस्तु ) शकट-गाडी और वाहन-नौका आदि वे चलाचं, ( उवणयण चोलग विवाहो जन्नो अमुगम्मि होउ दिवसे सुकरणे सुमुहुत्ते सुनरवत्त सुतिहिम्मिय) उपनयन(जनोइ)-कलाग्रहण, गेलक-प्रथम शिरोमुडन, विवाह, यज्ञ ये सब अमुक दिवसमें, अमुक प्रवादि शुभकरण में, रौद्रादि तीस ३० मुहतों मे, अमुक अछे मुहर्त में अश्विनी आदि सत्तावीस नक्षत्रों में से किसी अमुक शुभ नक्षत्र मे नदा आदि तिथियों में से किसी अच्छी तिथि में होना चाहिये । तया (अज्ज होउण्वण) आज सौभाग्य एव सन्तति समृद्धि के निमित्त वधू ( वटु) आदि का स्नान नाणे मन ताना विस्तारमा तय “ घोरा सगामा वस्तु जयतु" त्या ते सय ७२ युद्ध धरे भने विभय प्रास उरे "सगडवाहणाइ थ पवहतु" श52-11 मने पाहुन-नौ माहिते यावे, 'उवणयण चोलग विवाहो जन्नो अमुगम्मि होउ दिवसे सुकरणे सुमुहुत्त सुनम्पत्त सुतिहिम्मिय " उपनयन કલાગ્રહણ, ચલા-પ્રથમ મેવાળા ઉતરવાની ક્રિયા, વિવાહ, યજ્ઞ એ સઘળુ અમુક દિવસે, અમુક અવાદિ શુભ કરણમા, રૌદ્રાદિ ત્રીસ (૩૦) મુહૂતમાના અશ્વિની આદિ સત્તાવીસ નક્ષત્રોમાના કેઈ શુભ નક્ષત્રમાં, ન દા આદિ તિથિ योमानी ४ शुभ तिथि थबुन तथा " अज्ज होउण्हवण" मारे सोमाय भने सतत समृद्धिने भाटे वधू (4) माहिन नान शव. २
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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