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________________ २२६ प्रश्नग्याकरणसूत्र टीका-परततिमापडाय' परतृतिव्यापृताथ % परमसमतामरणतत्पराः अथवा परतप्तिव्यापृताः परचिन्तापरायणा 'असमिक्सियभामिणो ' अममी क्षितभापिणः अपर्यालोचितवक्तारः 'उपदिसति' उपरिणन्ति-गापयन्ति सहसा =अकस्मात् अकारणमेवेत्यर्थः तदेवाह-यत् 'उहा' उदा: प्रमिद्धाः 'गोणा गावः चलीवर्दा, गवयाः गोसना न्या' रोक्ष' इति भापा प्रसिद्धा' पशुविशेषा' 'दमतु' दम्यता:एते गिक्ष्यन्ताम् । तथा 'परिणयवया' परिणतवयम' तरुणाः 'अस्सा' अश्वाः 'हत्यी' हस्तिन. प्रसिद्धा गोरया मेपाः 'कुक्कुडा' कुक्कुटाश्व-भतीताः 'विज्जतु' कोयन्ता मूल्यन गृह्यन्ना 'रिणावहय' कापयतपूर्वोक्तानामेन क्रयण कारयत 'निरकेह' मिीणी-गिराय कुरुत 'पचह' पचत-पाक कुरुत तथा 'मयणस्स ' स्वजनाप ' देह' दत्त-मासादिक दीयता फिर भी करते हैं.--'परतत्ति' इत्यादि टीकार्य-(परतत्तिवावटा य ) जो दूसरों को प्रसन्न करने में तत्पर रहते हैं, अथवा पर को चिन्ता में परायण रहा करते हैं वे (असमि क्खियभासिणो) विना विचारे ही बोल दिया करते है, इस बात का वे विचार नहीं करते है कि हमारे इन वचनों से दूसरे प्राणियों को कष्ट होगा, (महसा उबदिसति ) विना कारण केही यो दूसरो से कह देते हैं कि तुम लोग ( उद्यागोणागवया दमतु ) ऊँटों को, बैलों को तपारोझाँ को दमनकरो-अच्छी चाल चलना सिखलाओ (परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलका कुक्कुडा किज्जतु ) तरुण, घोडे, हाथी, मेप, कुकुट, इन जानवरों को स्वय खरीदो और (किणावह ) दुसरो को परीदवाओं तथा (विस्कर य) येवो ओर ( पचह )ओपनादि पकाजो ( सयणस्त ते विष ७ ५ सूत्रा२ ४ - " परतत्ति " ula टी -"परतति वावडाय "२ मीखोटीने मुस २वाने मातुर डाय छ, अथवा पानी यिन्ताम॥ ५२राय २ तो ' असमिबिम्ब यभासिणो" विया उर्या विना माया ४२ छ तेसो भयो विया२ ७२ता नथी समा। २. क्यनाथी भी प्राणायाने उपट पडायरी " सहसा उपदिसति" तसा विना १२६] भी सामने ४३ छ तमे “ उट्टागोणा गवया दमतु" Gटनु, मोनु तथा शओनु भन ४२-मारी यास यासता शिwa " परिणयरया अस्सा हत्थी गवेलका कुक्कुडा किज्जतु" युवान, घोडा, डाथी धेट ४, मा तमे ते म अने “किणावेह " मीत पासे
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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