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________________ JOM २१० प्रश्नव्याकरण टीका-'परस्स' परस्य अन्य सम्बन्धिनि 'अत्यम्मि' अर्थ-धने 'गदियगिद्धा' अथितगृद्धा अत्यन्तलोलुपाः 'निरसे' निक्षेपानन्यासान् 'धरोहर' तथा 'थापन' इति भापामसिद्धम्, 'अपहरति' अपहरन्ति 'नहि बया मत्पाः स्थापित मित्युक्त्वा सर्वथा अपपन्ति । 'अमिजुजति य' अमियोनयन्ति चम्परम् 'असं तपहिं' असद्भिः अविद्यमानेषिः । तथा 'लुद्वा य' लुभाव परधनलोलुपा धनलोभेन 'कूडसविखत्तण' कूटसावित्व करेंति 'कुर्वन्ति । चाराद् ग्रन्थिमो. चकत्वपश्यतो इरत्वादिकमपि विज्ञेयम् । 'असन्चा' असत्याः = अमत्यवादिनः 'अत्यालिय ' अर्थाळीक अर्थाय-धनादि प्रयोजनाय अलीक, तथा 'कमालिय' कन्यालीक-कुमारी विषयकमलीक, यथा-सुशीला कन्या दु'शीला, दुशीला च सुशीला मित्यादि कथयन्ति । इद लोकेऽतिगर्हितत्वापात्त तेन उपलक्षणमेतत्मनुष्यजातिपिपयक्रममस्तालोकस्य । 'भोमालीय ' भूभ्यलीक-पृथिवीनिमित्तमसत्य-तहातथा 'गवालिय' गवालीरगोसम्बन्धिकमसत्य 'गरुय' गुरुक फिर वे क्या करते हैं सो करते है-'निस्खेवे' इत्यादि। टीकार्थ-(परस्स अथिम्मिगढियगिद्धा ) दूसरों के धन में अत्यत लोलुप बने हुए ये (निक्खेवे अवहरति) धरोहर को-"तुमने मेरे पास नहीं रखी है " ऐसा कहकर दवा लेते हैं। तया (अभिजुजति य पर असतएहिं ) दूसरों को अविद्यमान दोपों से दूषित कर देते हैं । (लुद्धा य कूडसक्खित्तण करेंति ) परधन के लोभ से लुब्ध बने हुए ये झूठी गवाही देते हैं तथा (च) शब्द से दूसरों की गाठ कतर लेते है तथा देखते देखते धन भी चुरा लेते हैं। (असच्चा ) ये असत्यवादी (अथालिय ) अर्थालीक, ( कन्नालीय ) कन्यालीक, (भोमालिय) भूम्य वणी तमाशु छत सूत्रार छ-"निखेवे" त्याल टीथ-"परस्स अथम्मि गढियगिद्धा" भीतना धनने भाटे साधु५ मनसा “निक्खेवे अवहर ति" धरोहरने-मानामत थापाशुन पयावी पा341 भाटे मा प्रमाणे ४ छ-" तमे भारे त्या प्रभारी थापा भूडी नथी' तथा ' अभि जुजति य पर असतएहिं " wlon सोभा-तभनामा न डाय तवा होषानु આપણુ કરીને તેમને કલકિત કરે છે " लुद्धा य कूडसक्सित्तण, करे ति" पाना धनने सोने ता पाटी સાક્ષી આપે છે તથા “ શબ્દથી બીજાના ખીસ્સા કાપે છે અને જેતા नतामा धन पशु यारी ३ छ " असच्चा' ते असत्यवाही ! ' अत्था लिय " अर्थाती, "कन्नालिय " न्याls, " भोमालिय "भ्य" "
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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