SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - २०. प्रश्नण्याकरणसूत्रे घाती 'पानकम्मकारी ' पापकर्मकारी-दुष्कर्माचरणगीत 'मरम्मकारी' अकर्म कारी अनुचितर्मकारी ' अगम्मगामी' अगम्मगामी भगियादिगमनकारी, चास्ति । अय 'दुरप्पा' पुरात्मा-दुष्टात्मा 'बहुप्सु य' बहुकैः च = अनेक 'पातगेसु' पातकेपु-यापरमम् 'जुत्तो' युक्तासलग्न इति । एप 'भदगे' भद्रके निर्दोपे 'मन्ठरी' मत्सरिणः = परगुण पिग. 'जपति' जल्पन्तित्रुगन्ति । कीदृशास्ते मृपारादिनः ? इत्याह- गुणफित्तिनहपरलोगनिप्पि वासा' गुणकीर्तिस्नेहपरलोकनिप्पिपासा:गुणाः = नियावादयः, कीतिःयशः स्नेह. भूतेषु प्रीतिः, परलोक जन्मान्तर तेपु निप्पिपामा=निराकादक्षाः एवमुक्तप्रकारेण पते 'आलिययणदरखा' अलीकरचनदक्षाः मृपाभापनिपुणाः, ' परदोसुप्पायणससचा । परदोपोत्पादनससक्ताः = परदोपाविष्फरणतत्पराः यह (विस्सभधायओ) विश्वासघाती है ( पावकम्मकारी ) पापकर्मकारी है, (अम्मकारी ) अनुचित कामों को करता रहता है, तया (अगम्मगामी) अगम्यगामी है-भगिनी आदिका सेवन करने वाला है । (अय दुरप्पा ) यह दुरात्मा (बहुण्सु य पातगेसु जुत्तो) अनेक पापकर्मो मे लगा रहता है । ( भद्दगे) निर्दोप पुस्प मे ( मच्छरी ) दूसरों के गुणों से देप करने वाले, तथा (गुणफित्तिनेहपरलोगनिप्पिवासा) विनय आर्जव आदि गुणों मे, कीर्ति में नया स्नेह-जीनों के ऊपर प्रीति रखने मे और परलोक में आकांक्षा विहीन पुरुप (एव पजति) इस प्रकार बोलते है। इन्हें अपने परलोकके सुधार की भी कोई चिंता नहीं होती है। (एघ एए) इस प्रकार ये ( अलियवधणदक्खा ) असत्य बोलने में बडे चतुर, तथा (परदोसुप्पायणससत्ता) दूसरों के दोषो को प्रकट वि विस्सभघायओ" ते विश्वासपाती छे, " पाकम्मकारी" पापकृत्या ४२ छ, “ अम्मकारी" मनुथित त्यो ७२ना। 2," अगम्मगामी " अगभ्यगामी छ-ममिनी मानि सेवन ३२ना२ छ, “ अब दुरप्पा" मा दुरात्मा “ बहुएसु य पातगेसु जुत्तो" भने पाप मा दीन २ छ" " भद्दगे" निषपुरु पानी ‘मच्छरी" तथा अन्य सुशानी द्वेष ४२॥२, तथा “ गुणकित्ति नेह परलोग निस्पिासा" विनय मा0 माह गुणेथी २डित, जाति तथा स्नेहथी डित, भने ५२४ मा २डित “ एव जपति" 6५२ प्रमाणे माले छ पोताना ५२४ सुधारवानी पY यिन्त हाती नयी “ एव एए" 240 शत त “अलियययणदस्सा" असत्य मालवामा ध। विधु, तथा " पर दोसप्पायणससत्ता" मन्यना होषाने नडर उवामा १ सीन भवाते भूषा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy