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________________ - १४२ प्रश्नध्याकरण स्पृशति । जीवस्याऽमद्भागदेव न शुभाशुभकर्मवन्यनमिति भारः। अत एवं "मुकयदुधयाण' मुकत दुकवाना-पुण्यपापानां फलमपि ' नस्थि' नास्ति जीवासत्त्वेन तत्फलस्याऽप्यसत्चात् । तथा 'सरीर ‘पमहाभूइय' पत्रमहा भौतिक पृथिव्यप्तेजोगाग्वाकाशमय, 'भामति' भापन्ते । तत् कीदश भाषन्ते इत्याह-' हेवागजोगजुत्त' हेवाकयोगयुक्तम् , हेवाका-समावस्तेन योगः-परसर सयोगस्तेन युक्तम् , पञ्चभूताना परस्पर सयोगो रियोगध सभागद् भवति, न वन किंचिदन्यत् कर्मादि आत्मा वा कारणमस्तीति भावः। केई' केऽपि बुद्ध मवानुसारिणः 'पचखधे' पञ्चस्कन्धान्-रूपवेदनाविज्ञानसनामस्काररूपान् भणन्ति कथयन्ति, तर-रूपस्कन्ध, -पृथिव्यादयो रूपादयश्च १, वेदनास्करानही है तो मर कर वही पुनः अपने पुण्य पापकर्मों के अनुसार मनुष्य लोक मे अथवा देवादिलोक में जन्मता है, यह कान असल है। तात्पर्य इसका यही है जीव का अस्तित्व न होने से उसके (नस्थिफल सुकयदुक्याण ) शुभ और अशुभ कर्मो का वध नहीं होता है । जब शुभ अशुभ कर्मों का बध ही नहीं होता है तब उनके फल का भी अभाव ही है । तथा ( पचमहाभूडय सरीर मासति) यह जो शरीर है वह वृथिवी, अपू , तेज वायु और आकाश, इन पाचभूत स्वरूप है। (हेवाग जोगजुत्त) पाच भूतों का यह पारस्परिक सयोग अथवा वियोग स्वभाव से ही होता रहता है । इसमे न तो कोई कर्म ही कारण है और न आत्मा ही। (केई पच य खधे भणति) कितनेक वादी बौद्ध-सिद्धान्तमतानुयायी-ऐसा कहते है कि रूप १, वेदना २, विज्ञान ३, सज्ञा ४, જે જીવ નામને કોઈ પદાર્થ જ ન હોય તે તે મરીને પિતાના પુન્ય પાપ કર્મો પ્રમાણે મનુષ્ય લેકમાં અથવા દેવાદિ લેકમા જન્મે છે તે કથન અસત્ય કરે છેકહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવનું અસ્તિત્વ ન હોય તે તેના " नत्थि फल सुकयदुचायाण" शुम अने मशुस भनि ५ धातो नयी જે શુભાશુભ કર્મોને બધા જ બ ધાતો ન હોય તો તેના ફળનો પણ અભાવ र डाय तथा " पचमहाभूइय सरीर भासति " २ सरी२ छ त પૃથિવી, અપૂ (જળ), તેજ, વાયુ અને આકાશ, એ પાચ ભૂત સ્વરૂપ છે "हेवागजोगजुत्त" पाय भूतानो मा पा२२५२४ सेप अथवा वियाग સ્વભાવથી જ થયા કરે છે તેમાં આત્મા કે કર્મ કારણરૂપ નથી ___ ई पचेय सधे भणति " टा४ पाहमा मानना। -मौद्ध सिद्धान्त भतानुयायी थे 3 छ : (१) ३५, (२) वहना, (3) विज्ञान, ( 1 .सहा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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