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________________ % 3A १६० प्रश्नध्याकरण 'अण्णारिओ' अनार्यःले जनममाचारितत्वात् , 'निग्वियो' निगा अविद्यमाना घृणा=पा जुगुप्सा यस्मिन् स तथा धिोजनम्नदाचरितत्वात्प्राणव धोऽपि तथा, 'निस्ससो' नूगम नूरजनाचरितत्वात् 'महामओ' महाभया= महाभयोत्पादकत्याद , पइभभो' मतिमया सरमाणिना भयहेतुत्वात् , 'अइमओ' अतिभया-मरणान्तभयजनकत्वात् । 'पीणभो' भापनक:-भयोत्पादकत्वाद् , 'तासणओ' नासन -अकस्मात-ट्दयोद्वेगजनकत्वान् , 'अगज्जओ' अन्याय न्यायादनपेता युक्तान्याय्य., नन्याय्यः अन्याग्या,न्यायार्जितत्वात् , 'उध्येयणओ' उद्वेगजनक. मर्मपीडाकारकत्वात् 'णिरत्यरखो' निरपेक्ष निर्गता अपेक्षा परप्राणरक्ष विषया यत्र स तथा, 'निद्धम्मो' निर्धर्म =श्रुतचारित्र धर्मरहितत्वात् , 'निप्पिासो' असमीक्ष्यकारी जनों द्वारा किया गया होने से साहसिक है, (अणारिओ)म्लेच्छ जनों द्वारासमाचरित होने के कारण अनार्य है। (निग्धिणो) इसे करने वाले मनुष्य को पाप के प्रति घृणा नहीं रहती है अतः यह प्राणवध भी निर्धणरूप है (निस्ससो) भारजन इसे करते रहते हैं इस लिये यह नृशग्रूप है । (महन्भओ) इसे करते समय करनेवालेको महान् भयका कारण होता है इसलिये यह महाभयरूप है । (पइभओ) समस्त प्राणियों को भय का हेतु होने से यह प्रतिभयरूप है । ( अहमओ) मर णान्तभय का जनक होने से यह अतिभयरूप है। (वीहणओ) भयका उत्पादक होने से यह भयानक है । ( तासणओ) अकस्मात् हृदय में उद्वेग का जनक होने से वामनकरूप है ( अणज्जओ) न्यायवर्जित होने से यह अन्यायल्प है। ( उव्वेयणओ) जीवों को उद्वेग जनक होने से यह उद्वेजकरूप है (णिरवयकायो) पर प्राणियों की रक्षा करने की अपेक्षा असमीक्ष्याश सोनी द्वारा रात लवाथी साडमिछ, "अणोरिओ" छ सोमारा मायरित पाथी मनार्य छ "निधिणो" प्रा१५ ४२नार मनुष्यने पा५ प्रत्ये धुएयती नथी, तेथी त प्रापध ५५ निघ३५ छ, “निस्ससो" १२ साली तेनु सेवन ४२ छ तेथी ते नृश स३५ छ, "महत्भओ" ते ४२ती વખતે કરનારને મહાન ભયનું કારણ તે બને છે તેથી તે મહા ભયરૂપ છે "पदभओ" सपा प्रायाने ते नयना १२४३५ डीवाथी प्रतिमय३५ छ 'अभओ" भृत्युना भयो डोवाथी त मति मय३५ छे "बीहणओ" अयना डोवाथी तभयान छ “तासण ओ" हयमा मस्भात वेगना डोवाथी ते त्रासन ३५ छ, “ अणज्जओ" न्यायडित डोवाथी ते सन्याय " उज्वेयणओ" वोमा वे पन्न ७२नार खोपाथी ते ०३५ ३५छ “णिरत्यक्खो" पर प्राणीमातु क्षषु वानी अपेक्षाथी...हित
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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