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________________ प्रभ याकणचे सर्वदेहः सकलशरीर चेपा ते वथा, 'रिमणियगमगा' विनिताहोपाना = विशूनितानि-नानाविधमहारैः सजातशोथानि, कलककायमानमल सेचनेन समुत्पन्नस्फोटकानि वा अगोपागानि येपा ते तया, एव परमाधार्मिके पदार्थताः सन्तो नरकजीवा महीतले कठोरनरकभूमौ गिलोलति' रिललन्ति-पिठन्ति ॥१०३५।। ततः किं भवती ? त्याह--'तत्य य विग' इत्यादि । ___ मूलम्-तत्थ य विग सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सरभदीविय-वियग्घ साल-सीह-दप्पिय-खुहाभिभूएहि णिच्चकालमणसिएहि घोरारसमाणभीमरुवेहि अक्कमित्ता दढदाढा गाढडक कड्डिय सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्प ते समंतओ विमुक्कसधिवधणा वियंगमगा कककुररगिद्धघोरकटवायसगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुडेहि ओवइत्ता पक्खाहयतिक्वणक्खविकिन्नजिभछियनयणनिदओलुग्गविगतवयणा उक्कोसता य उप्पयता नियता भमता ॥ सू०३६॥ टीका-तत्र च 'विग' का ईहामृगा 'भेडिया' इति प्रसिद्धाः रित हो चुका है ऐसे (विसूणियगमगा) तथा नाना प्रकार के प्रहारों से जिनमे सूजन आगई है, अथवा कलकलायमान क्षार जल के सिंचन से जिन पर फफोले पड गये है ऐसे अग उपाग वाले वे नारकी जीव परमाधार्मिकों द्वारा कथित होकर (महीतले ) नरक की कठोर भूमि पर (विलोलंति ) लोटते हैं ॥सू ३५ ॥ - इसके बाद क्या होता है ? इस बात को सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं-'तत्थ य विग-सुणग' इत्यादि । टीकार्थ-(तत्थ य) उन नरकोंमें (विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जारછે તેવા, અથવા કળકળતા ક્ષારયુક્ત જળના સિંચનથી જેમના અંગ ઉપાશે પર ફેલા પડી ગયા છે એવા નારકી જીવ પરમધામિર્ક દ્વારા યાતનાઓ पाभी “महीतले " नरनी हार सभि ५२" विलोलति" डीनय छ । उ4॥ त्या२४ शु याय छे ते पात सूत्रा२ मताव छ-" तत्थ य विगसुणग" छत्यादि साथ-"तत्य य" तेनरमा “विग-सुणग-सियाल-काक-मज्जार-सर
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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