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________________ सुदर्शिनी टीका म० १ सू० ३३ यातनाविपये आयुधप्रकारनिरूपणम् ११९ यातनाविपये आयुधमकाराह-' इमेहिं ' इत्यादि मूलम्-इमेहि विविहेहि आउहेहि कि ते ' मुग्गरमुसुंढिकरकय-सत्ति-हल-गय मुसल-चक-कात तोमर सूल-लउल भिडिपाल सम्वल पटिस चम्मे-दुहण मुट्रिय-असि खेटग खग्ग-चावनाराय कणक-कप्पिणि वासिपरसु-टक-तिक्ख-निम्मलहि अण्णेहि य एवमाइएहि असहेहिं वेउविएहि पहरणसएहि अणुवद्धति बवेरा परोप्परं वेयण उईरति अभिहणंता ॥ सू० ३३ ॥ ___टीका-'इमेहिं ' एभिः चक्ष्यमाणः 'विविहेहिं ' विविधैः अनेकप्रकारैः 'भाउहेहिं' आयुधैः शस्त्रैः परस्पर यातनाम् उदीरयन्तीत्यग्रेण सम्बन्धः । 'कि ते' कानि तानि आयुधानि ? इत्याह-~-'मुग्गर ' मुद्गरः प्रसिद्धः 'मुसुदि' शस्त्र लोहमय मार्ग के ऊपर उन्हें चलाते हैं और फिर ( वारणाणि ) उनसे शक्ति से भी अधिक भार को वहन कराते हैं ॥सू. ३२ ॥ अय सूत्रकार यातना के विषय में आयुधों के प्रकारों को कहते हैं-'इमेहिं विविहेहिं ' इत्यादि । ___टीकार्थ-(इमेहिं)इन वक्ष्यमाण (विविहेहिं) अनेक प्रकारके (आउहेहिं) आयुधों-शस्त्रो से वे नारकी परस्पर में यातना ( वेदना) को उत्पन्न करते हैं । इस प्रकर से यहां सबध घटित कर लेना चाहिये-( किं ते) , व आयुध कौन २ से है ? सो उन्हें प्रकट करते हैं-(मुग्गर ) मुद्र (मुसुदि ) मुसुढि-शस्त्र विशेप ( करकय ) कच-करोंत (सत्ति) तपास सोढाना भाग 6५२ तमः सा छे मन वजी "वाहणाणि" तेमनी શક્તિ કરતા પણ વધારે છે જે તેમની પાસે ઉપડાવે છે કે સૂ ૩૨ છે હવે સૂત્રકાર યાતનાઓ આપવા માટે ઉપયોગમાં લેવાતા આયુધેનુ पधुन ४२ छ-"इमेहिं विविहेहि" छत्यादि "इमेहिं विविहेहि" नाय विधामा सावता मने प्रारना "आउहेहि" આયુધ-શાસ્ત્રો વડે તે નારકીઓ પરસ્પરમાં યાતના “વેદના” ઉત્પન્ન કરે છે, એ પ્રકારનો સબધ અહીં સમજી લેવાને છે "किं ते?" मायुध। ध्याच्या छ १ तासूत्रस२ ते आयुधो मताव छ"मगर" भात, “मुसुढि" भुसढी नामनु शत्र, "करकय" ४३५-४२वत,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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